#लोकतंत्र_ही_भीडतंत्र
जन मानस के अरमानों पर, जब भी चोट लगी है। न्याय दिलाने वाले ह्रदय में, जब भी खोट जगी है।
Read Moreजन मानस के अरमानों पर, जब भी चोट लगी है। न्याय दिलाने वाले ह्रदय में, जब भी खोट जगी है।
Read Moreमस्त फुहारों का मौसम सब चाह रहे, सावन आया आहट आपकी चाह रहे। कहाँ छुपे हो स्यामल जलद हमारे जी,
Read Moreकभी करता है जी सब छोड़कर सन्यास ले लूं मैं, छोड़कर सारी जिम्मेदारी थोडा सा साँस ले लूँ मैं। रोके
Read Moreबनो निरंकुश मोदीजी दुष्ट स्वजन पर वार करो, मानवता नहीं होगी कलंकित असुरों का संहार करो। खीझ रहे जो खीझने
Read Moreगरज रहे हैं बादल आसमान में जमकर, चमक रही है बिजली आसमान में जमकर। हम बैठे हैं घरौंदों में बूंदों
Read Moreओ परदेशी ओ मतवारे, लिखूं तुम्हे क्या तू ही बता रे। कागज कलम लिए बैठी हूँ, खो जाती तेरी याद
Read Moreठाठ खो चूका, खुशियों के दिन रात खो चूका, बरबादी के क्षण में बाट देखता अपनों की माँ के माँ
Read Moreभला-भला सा लागे क्यों घनघोर अंधेरा बेचैन मेरा दिल भटके पागल-पागल सा……. अस्थिर मन को मेरे ऐसा लगता है। बेचैन
Read Moreहोना था बलवान जिसे, वो कृषक बहुत लाचर हुआ। सत्ता के गलियारे से, पल-पल अत्याचार हुआ।। पेट देश का भरता
Read Moreयह कविता 2004 में लिखा था- आज जब इसे पढ़ता हूँ तो बहुत कमियां दिखाती है, लगता है जो कहना
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