मुक्तक – शब्द संचयन
शब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा। काव्य जगत का मैं छोटा सा साधक हूँ,
Read Moreशब्द संचयन मेरा पीड़ादायक होगा, पर सुनो सत्य का ही परिचायक होगा। काव्य जगत का मैं छोटा सा साधक हूँ,
Read Moreबन के नशेड़ी इंसान हैवान बन जाते हैं, कभी-कभी तो पीकर भगवान बन जाते हैं। परिवार को गाली देते, सड़कों
Read Moreकहते हैं खुश रहती थी वह, सबकी सेवा कराती थी। सच्चाई के राह की प्रेमी, सत्यवती वह तनीयसी थी।। कार्यक्षेत्र
Read Moreमाँ ने अपनी सांसें देकर मुझको पाला है, भ्रूणमात्र को धारण कर जीवन को ढ़ाला है। आँचल के नीचे रखकर
Read Moreकल माँ के आँचल दूध पिया, गोदी में की अठखेलियाँ। आज कदम धरे धरती माँ पर, मेरी गूँज रही किलकारियाँ।।
Read Moreनन्हा मैं हूँ नन्हा सा ही पेड़ लगाऊंगा, भरी जवानी में फल जिसके ढेर खाऊंगा। हरी भरी धरती पर बरसेंगें
Read Moreसांझ की सिकता पर, नन्हे उज्ज्वल से कदम, जब पड़ते थे डगमग , तब उन्हें थामने वाली, दो सबल सी
Read Moreजी करता है दूर गगन में पत्थर एक उछालूँ मैं, आसमान में उसे डूबोकर, फिर से आज निकालूँ मैं। खोया
Read Moreना फायदा उठना, अरे इस होली में। ना कायदा झूठना, अरे इस होली में।। रंग लेके चलो फग जी भर
Read Moreवाचिक स्रग्विणी छंद ============= सुन रही है जमीं, सुन रहा आसमां। प्रेम की बात को, बुन रहा आसमां।। तुम चली
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