Author: प्रतिभा पाण्डेय "प्रति"

गीतिका/ग़ज़ल

बिखरो उच्छवासों में बनकर धड़कन

रूप सुधा का पान करा दो प्रियतम,तृप्त हो तीर्थ बन जाएगा ये मन।1। रोम-रोम आह्लादित, उर प्रेम विकसित,चमकता दमकता, अलौकिक

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