Author: प्रिया देवांगन "प्रियू"

भजन/भावगीत

आदिदेव महादेव

जटा विराज गंगधार शीश चंद्र सोहते।निहारते स्वरूप तेज तीन लोक मोहते।।विराजमान कंठ नाग है त्रिशूल हाथ में।जहाँ–जहाँ चले शिवा सदैव

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कविता

याद पिता की

होती थी मेरी,दिन की शुरुआत,पापा आपसे।। एक आवाज,कानों में पड़ते ही,देती दस्तक।। नयन नीर,लुढ़कते रहते,देखूँ तस्वीर।। रहते साथ,जीवन हर क्षण,पकड़े

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