वासुदेव
सजे किरीट मोर पंख कृष्ण माथ झूमते।चले समीर मंद–मंद शीश केश चूमते।।दिखे स्वरूप मेघ श्याम नैन नील साॅंवरे।लपेट पीतवर्ण देह
Read Moreजटा विराज गंगधार शीश चंद्र सोहते।निहारते स्वरूप तेज तीन लोक मोहते।।विराजमान कंठ नाग है त्रिशूल हाथ में।जहाँ–जहाँ चले शिवा सदैव
Read Moreहोती थी मेरी,दिन की शुरुआत,पापा आपसे।। एक आवाज,कानों में पड़ते ही,देती दस्तक।। नयन नीर,लुढ़कते रहते,देखूँ तस्वीर।। रहते साथ,जीवन हर क्षण,पकड़े
Read Moreहाथी भालू चीता बंदर।बैट बॉल लेकर आए।।हिरण लोमड़ी बारी–बारी।दोनों तब टीम बनाए ।। सूंड उठाकर बॉल उछाले।खुश हो कर दादा
Read Moreआज अध्यापक कक्षा में कदम रखते ही बच्चों से बोले – ” बच्चो ! आज सभी अपने–अपने पिता जी को
Read Moreसूखी पड़ी है बंजर धरती।दाने–दाने के लाले पड़ गए।।गाँव बिका, जमीन बिकी,जाने लोग,किसके पाले पड़ गए।। उन मेहनतकश मजदूरों ने,एक–एक
Read Moreघड़ा बना हूँ मैं मिट्टी का, आता सबके काम। जैसे गर्मी बढ़ती जाती, सभी
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