स्मृति के पंख – 35
इससे पहले का वाकया है जब हम दो पार्टनर रह गये थे मैं व ताराचन्द, तो एक सीजन हमारे पास
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Read Moreसुभाष को पतंग उड़ाने का बहुत शौक था। स्कूल से आकर पतंगबाजी में लग जाता। मेरी मजबूरी थी। बच्चों को
Read Moreहमारे साथियों ने अलग होकर पेशावर फ्रूट कं. नाम रखा। उनकी मुहूरत वाले दिन जब गुरुग्रंथ साहब के पाठ की
Read Moreउन दिनों पृथ्वीराज की तबीयत काफी खराब थी और रुपये की भी बहुत मजबूरी थी। एक दिन पृथ्वीराज की तबियत
Read Moreपृथ्वीराज पर अनहोनी हो चुकी थी। उसकी सेहत के बारे में हर समय फिक्र रहती थी कि होनहार बच्चा था।
Read Moreमेरा मन बहुत परेशान था। लेकिन पृथ्वीराज का हौसला बहुत था। उसने कहा- भापाजी क्यों खफा होते हो, मैं शादी
Read Moreराज व पृथ्वी राज की अपनी अलग दुनिया थी। मेरी मदद को उनका दिल करता कि कब पिताजी का हाथ
Read Moreथोड़े दिनों बाद मुझे वही मकान अलाट हो गया। मैंने मण्डी के नजदीक चाहा था, वह मण्डी के नजदीक था,
Read Moreमलेर कोटले में मुसलमान लोग बैठे थे। और वहाँ बाकायदा पैदावार हो रही थी। वहाँ के मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये
Read Moreकेवल सिर्फ 12 घंटे का था, इसलिये उसको माता के साथ अस्पताल के डब्बा में जगह मिल गईं। हमें क्या
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