उपसंहार (सबसे छोटे सुपुत्र श्री गुलशन कपूर की कलम से) लगभग 15 वर्ष बीत गये जब पिताजी ने अपने जीवन के बारे में यह सब कुछ लिखा। हम सब भाई-बहनों की यह हार्दिक इच्छा रही कि पिताजी के संस्मरण एक किताब के रूप में बनवाये जायें, ताकि आज के युग में जब बच्चे अपने दादा […]
Author: राधा कृष्ण कपूर
स्मृति के पंख – 44
फिर केवल के रिश्ते के लिए एक सज्जन मिले श्री फकीरचन्द जी, जिनकी बहन की लड़की के बारे वह केवल का रिश्ता कराने की बातें कहते थे। उनकी बहन जबलपुर की थी। फकीर चन्द का जीजा और वह खुद दोनों हमारे घर आए। केवल को भी दोनों ने देख लिया था। अब हमने लड़की को […]
स्मृति के पंख – 43
अब नये काम के लिए, जो टी0वी0 का लाइसेंस मिला था, काफी रुपये की जरूरत थी। मैंने वह प्लाट जो कोठी बनाने के लिए खरीदा था, फरोख्त करके इक्कीस हजार रुपये शांति स्वरूप और तिलकराज को दे दिया और कार्य स्टार्ट हो गया। तिलक टेलिविजन के नाम से बैंक से कर्जा भी लिया गया। दफ्तर […]
स्मृति के पंख – 42
इसी बीच एक लड़का आकर रमेश के दो जोड़ी के क्रय का व्यौरा लिखाने लगा, जबकि रमेश ने कुछ खरीदा ही न था। वह तो मैंने अन्दाजे से कह दिया था कि जो कुछ वह देना चाहते थे और बताया था, सम्भवतः दो हजार बनते थे। मैंने उस लड़के को जिसे मैं जानता नहीं था, […]
स्मृति के पंख – 41
13 अप्रैल, 1974 बैसाखी का दिन था। मैं आशु को गुलाब की टहनियों से पानी छपका रहा था, रसोई में ही बैठा था कि एक सज्जन से आए। बातचीत के बाद उसकी लड़की देखने भी गए। जब आगे बातचीत हुई तो लगा संजोग बन गया है? शायद इसलिए कि एक उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं, […]
स्मृति के पंख – 40
अनन्त राम को बाकी रुपया तो मैं अदा कर चुका था, सात सौ उसका बाकी रह गया था। जब मिलनी पर सुभाष और कमलेश जाने लगे, तो मैंने सुभाष को कह दिया कि बरेली में चाचा जी को सात सौ रुपया दे आना और फिर सुभाष और कमलेश तलवाड़ा चले गये। कुछ दिन बाद उनकी […]
स्मृति के पंख – 39
भ्राता जी कभी कभी लुधियाने आते रहते। उनकी जुबानी मोहिनी की अच्छाई और शराफत सुनता तो बहुत अच्छा लगता। शाम को और खाने के साथ साथ बातें भी होती रहती। इन्हें अब दर्द की अकसर शिकायत रहती जिसका इलाज नहीं था. थोड़ा लेटकर जमीन पर बरदाश्त करना होता था। मैंने पूछा भी कि भ्राता जी […]
स्मृति के पंख – 38
घर में अब एक नई पार्टी बन गई थी और इनका बोल बाला था। नई पार्टी में राकेश, गुड्डा, केवल, गुलशन (गुट्टू) ये सब मेम्बर थे और उस नई पार्टी की रौनक थी पूरे घर में। ये नई पार्टी बड़े काम करने का इरादा रखती थी और अपनी मंजिल की तरफ पूरी लगन से गामजन […]
स्मृति के पंख – 37
1971 में रमेश की नौकरी देहरादून में मिनिस्ट्री आफ डिफेन्स में लग गई और वह देहरादून आ गया। फिर 1972 में मिनिस्ट्री आफ फाइनेंस में देवास में नौकरी लग गई, जहाँ नया प्रोजेक्ट लगाया गया था। वह बराये टेªनिंग 3 माह के लिये इटली और इंग्लैण्ड भी गया था, जो मेरे लिये बहुत बड़ी बात […]
स्मृति के पंख – 36
30 अप्रैल 1957 को राज की शादी हुई। डोली जाने के बाद कुछ ही दिन बाद मुझे तार मिला कि राज बीमार है। हम दोनों मुजफरनगर चले गये। वहाँ ऐसा चर्चा सुना कि पृथ्वीराज का भूत राज को चमड़ गया है और कुछ लोग घूंआ जलाकर राज से पूछताछ कर रहे थे। जब मैंने ऐसी […]