कविता
देव सुनो ना.. बहुत कुछ है जो कहना चाहती हूँ तुमसे… मगर कह नही पाती ये बेचैनी ये एहसास ये
Read Moreकिस किस नाम से नहीं पुकारा तुमने गिनने पर आऊँ तो गिन भी ना पाऊँ सच तो ये है…. कि
Read Moreइससे पहले कि मैं बुझ जाती मेरी आखिरी लौ को अपनी हथेलियों में छुपा लिया था तुमने… और शायद वही
Read Moreतुमने जब चाहा जैसे चाहा मैं वैसे हीं जीती रही तुमने सूरज को चाँद कहा मैंने मान लिए तुमने दिशाओं
Read Moreमेरी रूह से लिपटी तेरी रूह अक्सर सिसक उठती है तनहाई की रातों में… सुलग उठते हैं एहसास मेरे तुम्हें
Read Moreये गम का सैलाब जिसने मेरे अंदर जन्म दिया एक शायरा को ये बचपन से मेरे साथ है मेरा हमनवाँ,
Read Moreसबकुछ वही है वही सुर…वही साज़ शाखों पे गिरती हुई शबनम की आवाज़ हाँ सबकुछ वही है वही रंग…वही रूप
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