कविता
देव सुनो ना..
बहुत कुछ है जो कहना
चाहती हूँ तुमसे…
मगर कह नही पाती
ये बेचैनी ये एहसास
ये दर्द ये तड़प..अंततः
मेरे हिस्से आ गए हैं
मैं इन्हें खुद से जुदा करूँ भी
तो कैसे ??
ये सब के सब कहीं ना कहीं
मेरे जीवन के खूबसूरत लम्हों से
जुड़े हुए हैं।
बहुत मुश्किल है मेरे लिए
इन लम्हों को अकेले सहेजना
जिसमें कभी तुम्हारी भी साझेदारी थी
रह रह के सारी बातें चलचित्र की भांति
निगाहों से गुज़रते हैं और साथ ही
बार बार ख्यालों में उभर के
आ जाते हो तुम..या यूँ कहूँ कि
तुम तो कभी मेरे ख्यालों से गए ही नही
सुनो ना..गर यूँ हीं जाना था..
तो अपने ख्यालों को भी
साथ ले जाना था…
तोड़ जाना था मुझे पूरी तरह
अपने वज़ूद से..
क्या यूँ भी कोई अधूरा छोड़ के
जाता है कभी ??
सुनो ना…बहुत कुछ है
जो कहना चाहती हूँ तुमसे
मगर कह नही पाती।
— रश्मि अभय