कविता

गरीब का बचपन

मैंने बचपन को खोते देखा गरीब के घर में
वह बच्चा था
पर वह बचपन-सा प्यार ना पा सका
उसे बचपन में ही दिहाड़ी भेज दिया
चार आने कमाने को
छोटे और कोमल थे उसके हाथ
चल रहे थे ईंट भट्टों में
क्या होता है बचपन
किस प्यार का नाम है बचपन
उसे कुछ पता नहीं था
उसे तो बस
यह फिक्र रहती हमेशा
कैसे कुछ कमा कर करें पूर्ति उदर की
ना पढ़ाई के बारे में
नहीं मित्र कोई उसका
आखिरकार गरीब था वो
मजदूरी करते बीता बचपन उसका
कैसे सिखाए वह अपने बच्चों को की बचपन क्या होता है
चला गया उसका बचपन दुखों के सागर में
अद्भुत अमूल्य था उस गरीब का बचपन।।

— दिनेश प्रजापत

दिनेश प्रजापत

गांव-मूली, जालौर मोबाइल नं.7231051900