स्वप्न दीप
दीप जला एक सपने में, वह सपना चंचल भोला था मृग नयनों ने जब पाला तो, मृदु अधरों ने भी
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Read Moreमन में हो उदासी तो ,खुशियों के दीप नहीं जलते हो पूनम की रात, तो अंधकार नहीं रुकते आज धरा
Read Moreहे! जगतगुरू जब –जब तुम्हें पुकारूं तब–तब तुम बहरे क्यों?हो जाते हो। क्या हवा लगी हैं इस दुनिया की जो
Read More“राम नाम की एक आन्तरिक दुनिया हैं और एक बाहरी जो घटित हो रहा हैं इसका द्वंद्व ही वर्तमान समय
Read Moreदर्द का सा नशा हैं स्मृतियों में, जो अधरों पर अदा रूप में आता हैं। इन्द्रधनुष सा रंग दिखाता, औ
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