दोहे “जिजीविषा”
रहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण। जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।। — जीने की इच्छा सदा, रखता
Read Moreरहती है आकांक्षा, जब तक घट में प्राण। जिजीविषा के मर्म को, कहते वेद-पुराण।। — जीने की इच्छा सदा, रखता
Read Moreहो रहा विहान है, रश्मियाँ जवान हैं, पर्वतों की राह में, चढ़ाई है ढलान है।। — मतकरो कुतर्क कुछ, सत्य
Read Moreसन्नाटा पसरा है अब तो, गौरय्या के गाँव में। दम घुटता है आज चमन की, ठण्डी-ठण्डी छाँव में।। — नहीं
Read Moreपरिवेश पर विविध दोहे — उच्चारण सुधरा नहीं, बना नहीं परिवेश। अँगरेजी के जाल में, जकड़ा सारा देश।१। — अपना
Read Moreसभ्यता, शालीनता के गाँव में, खो गया जाने कहाँ है आचरण? कर्णधारों की कुटिलता देखकर, देश का दूषित हुआ वातावरण।
Read Moreमीत बेशक बनाओ बहुत से मगर, मित्रता में शराफत की आदत रहे। स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं, नेक-नीयत हमेशा
Read Moreसहारनपुर निवासी डॉ.आर.पी.सारस्वत 2016 में मेरे द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय दोहाकार समागम“ में खटीमा पधारे थे। मेरी धारणा थी कि ये
Read More📷 बैठ मजे से मेरी छत पर, दाना-दुनका खाती हो! उछल-कूद करती रहती हो, सबके मन को भाती हो!! 📷
Read Moreजिन्दगी साथ निभाओ, तो कोई बात बने राम सा खुद को बनाओ, तो कोई बात बने — एक दिन दीप
Read Moreकुलदीपक की सहचरी, घर का है आधार। बहुओं को भी दीजिए, बेटी जैसा प्यार।। — बाबुल का घर छोड़कर, जब
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