दोहे “एला और लवंग”
सज्जनता का हो गया, दिन में सूरज अस्त। शठ करते हठयोग को, होकर कुण्ठाग्रस्त।। — नित्य-नियम से था दिया, जिनको
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Read Moreमोक्ष के लक्ष्य को मापने के लिए, जाने कितने जनम और मरण चाहिए । प्यार का राग आलापने के लिए,
Read Moreचन्द्रयान पर उतरना, एक कदम था दूर। किन्तु जरा सी चूक से, हुआ देश मजबूर।। — विफल हुए तो क्या
Read Moreअब नहीं आँखों में कोई भी शरम हो गये हैं लोग कितने बेशरम की नहीं जिसने कभी कोई मदद चाहते
Read Moreज़िन्दगी को आज खाती है सुरा। मौत का पैगाम लाती है सुरा।। उदर में जब पड़ गई दो घूँट हाला,
Read Moreक्षणिक शक्ति को देने वाली। कॉफी की तासीर निराली।। — जब तन में आलस जगता हो, नहीं काम में मन
Read Moreसपनों में ही पेंग बढ़ाते, झूला झूलें सावन में। मेघ-मल्हारों के गानें भी, हमने भूलें सावन में।। — मँहगाई की
Read Moreखिजाओं से बहारों की, कभी उम्मीद मत करना घटाओं में सितारों की, कभी उम्मीद मत करना — भले हों दूर
Read Moreपत्तों को सब सींचते, नहीं सींचते मूल। नवयुग में होने लगीं, बातें ऊल-जुलूल।। — सबके अपने ढंग हैं, अपने नियम-उसूल।
Read Moreउमड़ घुमड़कर आते बादल जल की बूँदे लाते बादल — पड़ी फुहारें रिमझिम-रिमझिम पिघल रहा है पर्वत से हिम अनुपम
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