“वासन्ती शृंगार”
बौरायें हैं सारे तरुवर, पहन सुमन के हार। मोह रहा है सबके मन को वासन्ती शृंगार।। गदराई है डाली-डाली, चारों
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Read Moreधूप और बारिश से, जो हमको हैं सदा बचाते। छाया देने वाले ही तो, कहलाए जाते हैं छाते।। आसमान में
Read Moreरंग-बिरंगी पेंसिलें तो, हमको खूब लुभाती हैं। ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., क.ख.ग. लिखवाती हैं।। रेखा-चित्र बनाना, इनके बिना असम्भव होता।
Read Moreमतलब पड़ा तो सारे, अनुबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। बादल ने सूर्य को
Read Moreक्षणिका को जानने पहले यह जानना आवश्यक है कि क्षणिका क्या होती है? मेरे विचार से “क्षण की अनुभूति को
Read Moreवेबकैम पर हिन्दी में प्रकाशित “पहली बाल रचना” रचना काल-15 जून, 2011 — करता घर भर की रखवाली। वेबकैम की
Read Moreसात दशक में भी नहीं, आया कुछ बदलाव। खाते माल हराम का, अब भी ऊदबिलाव।। चाहे धरती पर रहें, कैसे
Read Moreसुख का सूरज नहीं गगन में। कुहरा पसरा है गुलशन में।। पाला पड़ता, शीत बरसता, सर्दी में है बदन ठिठुरता,
Read Moreमम्मी देखो मेरी डॉल। खेल रही है यह तो बॉल।। पढ़ना-लिखना इसे न आता। खेल-खेलना बहुत सुहाता।। कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
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