“कूलर”
ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये। इसी लिए कूलर कहलाये।। जब जाड़ा कम हो जाता है। होली का मौसम आता है।। फिर चलतीं
Read Moreजब-जब आती मस्त बयारें, तब-तब हम लहराते हैं। काँटों की पहरेदारी में, गीत खुशी के गाते हैं।। हमसे ही अनुराग-प्यार
Read Moreरंग-गुलाल साथ में लाया। होली का मौसम अब आया। पिचकारी फिर से आई हैं, बच्चों के मन को भाई हैं,
Read Moreबौरायें हैं सारे तरुवर, पहन सुमन के हार। मोह रहा है सबके मन को वासन्ती शृंगार।। गदराई है डाली-डाली, चारों
Read Moreधूप और बारिश से, जो हमको हैं सदा बचाते। छाया देने वाले ही तो, कहलाए जाते हैं छाते।। आसमान में
Read Moreरंग-बिरंगी पेंसिलें तो, हमको खूब लुभाती हैं। ये ही हमसे ए.बी.सी.डी., क.ख.ग. लिखवाती हैं।। रेखा-चित्र बनाना, इनके बिना असम्भव होता।
Read Moreमतलब पड़ा तो सारे, अनुबन्ध हो गये हैं। नागों के नेवलों से, सम्बन्ध हो गये हैं।। बादल ने सूर्य को
Read Moreक्षणिका को जानने पहले यह जानना आवश्यक है कि क्षणिका क्या होती है? मेरे विचार से “क्षण की अनुभूति को
Read Moreवेबकैम पर हिन्दी में प्रकाशित “पहली बाल रचना” रचना काल-15 जून, 2011 — करता घर भर की रखवाली। वेबकैम की
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