“छन्द हो गये क्ल्ष्टि”
जब बालक की पीठ पर, लदा दुआ हो भार पढ़ने के सपने कहाँ, फिर होंगे साकार।। चमत्कार से के फेर
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Read Moreमुखपोथी के झाड़ में, कच्चे-पक्के बेर। जिन्हें न आती शायरी, वो भी कहते शेर।। सिद्ध हो रही साधना, सफल हुआ
Read Moreमई महीना आता है और, जब गर्मी बढ़ जाती है। नानी जी के घर की मुझको, बेहद याद सताती है।।
Read Moreकरके सभी प्रयास अब, लोग गये हैं हार। काशी में उलटी बहे, गंगा जी की धार।। पूरी ताकत को लगा,
Read Moreबिकते हैं बाजार में, जिनके रोज जमीर। छल-बल से होते यहाँ, वो ही अधिक अमीर।। फाँसी खा कर रोज ही,
Read Moreजो पीड़ा में मुस्काता है, वही सुमन होता है नयी सोच के साथ हमेशा, नया सृजन होता है जब आतीं
Read Moreपहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। आदम-हव्वा की बस्ती में, जीवन के हैं ढंग निराले। माना सबकुछ है
Read Moreगीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई, सिसक रहे अमराई में भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अँगनाई में फटा हुआ दामन अब तक भी
Read Moreसहते हो सन्ताप गुलमोहर! फिर भी हँसते जाते हो। लू के गरम थपेड़े खाकर, अपना “रूप” दिखाते हो।। ताप धरा
Read Moreलम्बी-लम्बी हरी मुलायम। ककड़ी मोह रही सबका मन।। कुछ होती हल्के रंगों की, कुछ होती हैं बहुरंगी सी, कुछ होती
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