“वृद्ध पिता मजबूर”
करके सभी प्रयास अब, लोग गये हैं हार। काशी में उलटी बहे, गंगा जी की धार।। पूरी ताकत को लगा,
Read Moreकरके सभी प्रयास अब, लोग गये हैं हार। काशी में उलटी बहे, गंगा जी की धार।। पूरी ताकत को लगा,
Read Moreबिकते हैं बाजार में, जिनके रोज जमीर। छल-बल से होते यहाँ, वो ही अधिक अमीर।। फाँसी खा कर रोज ही,
Read Moreजो पीड़ा में मुस्काता है, वही सुमन होता है नयी सोच के साथ हमेशा, नया सृजन होता है जब आतीं
Read Moreपहले काम तमाम करें। फिर थोड़ा आराम करें।। आदम-हव्वा की बस्ती में, जीवन के हैं ढंग निराले। माना सबकुछ है
Read Moreगीत-ग़ज़ल, दोहा-चौपाई, सिसक रहे अमराई में भाईचारा तोड़ रहा दम, रिश्तों की अँगनाई में फटा हुआ दामन अब तक भी
Read Moreसहते हो सन्ताप गुलमोहर! फिर भी हँसते जाते हो। लू के गरम थपेड़े खाकर, अपना “रूप” दिखाते हो।। ताप धरा
Read Moreलम्बी-लम्बी हरी मुलायम। ककड़ी मोह रही सबका मन।। कुछ होती हल्के रंगों की, कुछ होती हैं बहुरंगी सी, कुछ होती
Read Moreसड़क किनारे जो भी पाया, पेट उसी से यह भरती है। मोहनभोग समझकर, भूखी गइया कचरा चरती है।। कैसे खाऊँ
Read Moreरहता वन में और हमारे, संग-साथ भी रहता है। यह गजराज तस्करों के, जालिम-जुल्मों को सहता है।। समझदार है, सीधा
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