Author: *डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

गीतिका/ग़ज़ल

“फूल बनकर सदा खिलखिलाते रहे”

दर्द की छाँव में मुस्कराते रहे फूल बनकर सदा खिलखिलाते रहे हमको राहे-वफा में ज़फाएँ मिली ज़िन्दग़ी भर उन्हें आज़माते

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