“अपना धर्म निभाओगे कब”
अपना धर्म निभाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ
Read Moreअपना धर्म निभाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ
Read Moreहो गया मौसम गरम, सूरज अनल बरसा रहा। गुलमोहर के पादपों का, “रूप” सबको भा रहा।। दर्द-औ-ग़म अपना छुपा, हँसते
Read Moreसभी तरह की निकलती, बातों में से बात। बातें देतीं हैं बता, इंसानी औकात।। — माप नहीं सकते कभी, बातों
Read Moreशून्य में दुनिया समायी, शून्य से संसार है। शून्य ही विज्ञान का अभिप्राण है आधार है।। शून्य से ही नाद
Read Moreढल गयी है अब जवानी मिट गयी है सब रवानी शाम देती है अन्धेरा सुबह होती है सुहानी दे रहे
Read Moreजिसमें हों व्यञ्जन भरे, वही व्यञ्जना मीत। बन जाते हैं इन्हीं से, जीवन के कुछ गीत।। — दिल से निकले
Read Moreयाद हमेशा कीजिए, वीरों का बलिदान। सीमाओं पर देश की, देते जान जवान।। — उनकी शौर्य कहानियाँ, गाते धरती-व्योम। आजादी
Read Moreजब गर्मी का मौसम आता, सूरज तन-मन को झुलसाता। तन से टप-टप बहे पसीना, जीना दूभर होता जाता। ऐसे मौसम
Read Moreरतन की खोज में हमने, खँगाला था समन्दर को इरादों की बुलन्दी से, बदल डाला मुकद्दर को लगी दिल में
Read Moreजब भी सुखद-सलोने सपने, नयनों में छा आते हैं। गाँवों के निश्छल जीवन की, हमको याद दिलाते हैं। सूरज उगने
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