“पथ उनको क्या भटकायेगा”
पथ उनको क्या भटकायेगा, जो अपनी खुद राह बनाते भूले-भटके राही को वो, उसकी मंजिल तक पहुँचाते अल्फाज़ों के चतुर
Read Moreपथ उनको क्या भटकायेगा, जो अपनी खुद राह बनाते भूले-भटके राही को वो, उसकी मंजिल तक पहुँचाते अल्फाज़ों के चतुर
Read Moreप्रीत की पोथियाँ बाँचते-बाँचते, झुक गयी है कमर, ढल गयी है उमर। फासलों की फसल काटते-काटते, झुक गयी है कमर,
Read Moreदर्द की छाँव में मुस्कराते रहे फूल बनकर सदा खिलखिलाते रहे हमको राहे-वफा में ज़फाएँ मिली ज़िन्दग़ी भर उन्हें आज़माते
Read Moreजल में-थल में, नीलगगन में, जो कर देता है उजियारा। सबकी आँखों को भाता है, रूप तुम्हारा प्यारा-प्यारा।। कलियाँ चहक
Read Moreखेतों में विष भरा हुआ है, ज़हरीले हैं ताल-तलय्या। दाना-दुनका खाने वाली, कैसे बचे यहाँ गौरय्या? अन्न उगाने के लालच
Read Moreमोम कभी हो जाता है, तो पत्थर भी बन जाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, “रूप” बदलता जाता है।।
Read Moreबिछा रहा इंसान खुद, पथ में अपने शूल। नूतनता के फेर में, गया पुरातन भूल।। — हंस समझकर स्वयं को,
Read Moreखेतों में बिरुओं पर जब, बालियाँ सुहानी आती हैं। जनमानस के अन्तस में तब, आशाएँ मुस्काती हैं।। सोंधी-सोंधी महक उड़
Read Moreबौरायें हैं सारे तरुवर, पहन सुमन के हार। मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।। गदराई है डाली-डाली, चारों
Read Moreखिल उठा सारा चमन, दिन आ गये हैं प्यार के। रीझने के खीझने के, प्रीत और मनुहार के।। चहुँओर धरती
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