“आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना”
अब पढ़ाई और लिखाई छोड़ ना। सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।। काम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
Read Moreअब पढ़ाई और लिखाई छोड़ ना। सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।। काम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
Read Moreजो मेरे मन को भायेगा, उस पर मैं कलम चलाऊँगा। दुर्गम-पथरीले पथ पर मैं, आगे को बढ़ता जाऊँगा।। मैं कभी
Read Moreजो लगता था कभी पराया, जाने कब मनमीत हो गया। पतझड़ में जो लिखा तराना, वो वासन्ती गीत हो गया।।
Read Moreकितने हसीन फूल, खिले हैं पलाश में फिर भी भटक रहे हैं, चमन की तलाश में पश्चिम की गर्म आँधियाँ,
Read Moreदेता है ऋतुराज निमन्त्रण, तन-मन का शृंगार करो। पतझड़ की मारी बगिया में, फिर से नवल निखार भरो।। नये पंख
Read Moreतीखी-तीखी और चर्परी। हरी मिर्च थाली में पसरी।। तोते इसे प्यार से खाते। मिर्च देखकर खुश हो जाते।। सब्ज़ी का
Read Moreनिहित ज्ञान का पुंज है, गीता में श्रीमान। पढ़ना इसको ध्यान से, इसमें है विज्ञान।। — जनता की है दुर्दशा,
Read Moreमम्मी देखो मेरी डॉल। खेल रही है यह तो बॉल।। पढ़ना-लिखना इसे न आता। खेल-खेलना बहुत सुहाता।। कॉपी-पुस्तक इसे दिलाना।
Read Moreसुन्दर-सुन्दर और सजीले! आकर्षक और रंग-रँगीले!! शिवशंकर और साँईबाबा! यहाँ विराजे काशी-काबा!! कृष्ण-कन्हैया अलबेला है! जीवन दर्शन का मेला है!!
Read Moreआशा और निराशा की जो, पढ़ लेते हैं सारी भाषा। दो नयनों में ही होती हैं, सारी दुनिया की परिभाषा।।
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