मनहरण घनाक्षरी
पुष्पवाटिका खिली है, मधुमास मदमस्त, विष्णु प्रिया खिल रही, तुलसी आँगन की। बसंत की ये बहारें, भर रही अब स्याही,
Read Moreपुष्पवाटिका खिली है, मधुमास मदमस्त, विष्णु प्रिया खिल रही, तुलसी आँगन की। बसंत की ये बहारें, भर रही अब स्याही,
Read Moreमें खड़ी हूँ दर पे तेरे कर ले तू साज श्रृंगार। आज गौर वर्ण माँ गौरी चन्द्रदीप्ति भरा संसार।। माँ
Read Moreअश्कों में वो देश प्रेम की अमृत वर्षा आज भी है, जो सुनी थी कहानी देश प्रेम की। नयनों में
Read Moreउठे जब भी कलम मेरी अधरों पर कुछ विचार लिए। चल पड़ती हूँ तब में कुछ नयें अंदाज लिए।। सोचती
Read Moreयामिनी की इस प्रहरी में तुम्हारा अहसास महसूस हो रहा है। जैसे धीरे- धीरे चाँद ढल रहा है ।। कुछ
Read Moreवादियों की छाँव में जो वक्त गुजरा कितना शकून भरा था वो पेड़ो से भरा प्रकृति का किनारा,, कुछ पल
Read Moreये सूरज की किरणों का मुस्कुराना वो गुजरा हुआ जमाना,। एक एक किरण में है, वो अहसास पुराना, वो पहली
Read Moreबैठी हूँ तरू तल में अपनी क्लान्तियों को लिए हुए, देख रही हूँ चंचल मन तितलियों को लिए हुए,। झूम
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