लघुकथा – स्वेटर
रोमा जब से शादी होकर आई है तब से हर सर्दी में अपने पति रोहण को इन्हीं दो स्वेटरों में
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Read Moreसुखिया कुम्हारिन अपने बनाये माटी के दियों के संग बैठी बाजार में चिल्ला रही थी।”दस रुपए के दस दिये ले
Read More“बारिश के दिनों में बचपन में हमने कागज की नाव खूब चलाये हैं। बड़ा मजा आता था। तब हम नाव
Read Moreधरा ने किया पावस के बूंदों से आचमन।मुस्कुराई प्रकृति,खिलखिला उठा कानन।महक उठी बगिया,खिल गए सुमन।नाच उठा मयूरा,मन हुआ प्रसन्न।गरज उठे
Read More“अरे! भइया! तुमने तो लूट मचा रखी है।बीस रुपये की ककड़ी 40 रुपये किलो दे रहे हो।”मेम साहब अपने कुत्ते
Read Moreमैं रायपुर के माना रोड से अपनी कार से कहीं जा रही थी कि मैंने देखा कि सड़क किनारे बांस
Read Moreआज पुनिया पूरे सज-धज के काम पर आई थी।ऐसे तो रोज अस्त-व्यस्त सी आ जाती थी
Read Moreआज दादी माँ को पूरे एक साल बाद वृद्धाश्रम से घर लाया गया क्योंकि दादा
Read More“सुनो जी, ये कच्चे पपीते क्यों ले आये? यहाँ घर में कोई पसंद नहीं करता।
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