लघुकथा – मजदूर दिवस
इस चिलचिलाती धूप में आज उनके घर बगीचे में कुछ क्यारियां और बनाई जा रहीं थीं
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Read Moreदादी कुछ पुरानी फोटो देख रहीं थीं और पोते को बता रही थीं-“देख गुड्डू, ये मैंने और
Read Moreमौसम ने ली अंगड़ाई।बसन्त पर छाई तरुणाई।टेसू के फूल हो गए लाल।गुलमोहर भी दिखते कमाल।सजी है बहारों की डोली।चंदा संग
Read Moreभावना और आरती आज साथ साथ बाजार आईं हुईं थीं। एक फल वाले के ठेले पर वो फल खरीद रहीं
Read Moreरोमा जब से शादी होकर आई है तब से हर सर्दी में अपने पति रोहण को इन्हीं दो स्वेटरों में
Read Moreसुखिया कुम्हारिन अपने बनाये माटी के दियों के संग बैठी बाजार में चिल्ला रही थी।”दस रुपए के दस दिये ले
Read More“बारिश के दिनों में बचपन में हमने कागज की नाव खूब चलाये हैं। बड़ा मजा आता था। तब हम नाव
Read Moreधरा ने किया पावस के बूंदों से आचमन।मुस्कुराई प्रकृति,खिलखिला उठा कानन।महक उठी बगिया,खिल गए सुमन।नाच उठा मयूरा,मन हुआ प्रसन्न।गरज उठे
Read More“अरे! भइया! तुमने तो लूट मचा रखी है।बीस रुपये की ककड़ी 40 रुपये किलो दे रहे हो।”मेम साहब अपने कुत्ते
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