गाँधी-वंदना के मुक्तक
(1) मुझे गांधी ने सिखलाया,जिऊँ मैं कैसे यह जीवन। बनाऊँ कैसे मैं इस देह और मन को प्रखर,पावन। मुझे नैतिकता-पथ
Read More(1) मुझे गांधी ने सिखलाया,जिऊँ मैं कैसे यह जीवन। बनाऊँ कैसे मैं इस देह और मन को प्रखर,पावन। मुझे नैतिकता-पथ
Read Moreमंडला–भारत निर्वाचन आयोग के निर्देश व उच्च शिक्षा विभाग सहित ज़िला प्रशासन के आदेश पर शासकीय कन्या स्नातक महाविद्यालय में
Read Moreभारत माँ की आज़ादी को,बहुत यहाँ क़ुर्बान हुए। गोरों से लड़कर के सारे,देशभक्त संतान हुए।। हमने रच डाली नव गाथा, लेकर
Read Moreनया भास्कर द्वारे आया,गूँजे नये तराने। किरणों में है नवल ताज़गी,हर पल लगे सुहाने।। मंज़िल अब तो दूर न होगी,
Read Moreमंडला-फेसबुक के सुपरिचित व चर्चित साहित्य समूह ‘हिंदी साहित्य परिवार’ द्वारा किरण पांडेय जी के संयोजन-संचालन में राष्ट्रीय स्तर की
Read Moreसूरज आया इक नया,गाने मंगल गीत । प्रियवर अब दिल में सजे,केवल नूतन जीत ।। उसकी ही बस हार है,जो
Read Moreदिव्य दिवाकर,नाथ प्रभाकर,देव आपको,नमन करूँ। धूप-ताप तुम,नित्य जाप तुम,करुणाकर हे!,तुम्हें वरूँ।। नियमित फेरे,पालक मेरे,उजियारा दो,पीर हरो। दर्द लड़ रहा,पाप अड़
Read Moreगंगा मइया तुम हो पावन,तुम तो हो सबकी मनभावन। तुम हर लेतीं सबके दुख को,देतीं हो फिर सबको सुख को।।
Read Moreनैतिकता के पथ चलो, तभी बनेगी बात। जीवन तब होगा मधुर, पाये तू सौगात।। नैतिकता के संग हैं, दया, मनुजता,नेह।
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