कविता शिखा सिंह 12/11/2020 सपना कैसे पकडू धूप को , कैसे करुं रौशन जहाँ ! बन्द मुठठी में भी जलन का अहसास है। समुद्र की Read More
कविता शिखा सिंह 20/10/2020 कदम और गुनाह कदम दर कदम चलते रहे छोड गये पाँव अपनी परछाई गुनाह दिमाग करता रहा सहारा पाँव देते रहे छिपने को Read More
क्षणिका शिखा सिंह 20/10/2020 फर्क कागजों ने कभी फर्क नहीं किया , तालीम देने में! बोतलों ने कभी मजहब नहीं बदला , खून देने में! Read More
सामाजिक शिखा सिंह 20/10/2020 दहेज दहेज क्यों लेते हैं लोग क्यों अपने होने को खत्म करते हैं लोग । क्यों बेचते और खरीदते इंसानियत को Read More