सामाजिक

दहेज

दहेज क्यों लेते हैं लोग क्यों अपने होने को खत्म करते हैं लोग । क्यों बेचते और खरीदते इंसानियत को लोग।

कब मुक्ति मिलेगी। दहेज लोभियों से जो दहेज की माँग करते हैं। क्या अपनी बेटियों को विदा नहीं करते ।जो लोग बेटी की शादी में दहेज देते हैं। उन माता पिता को यह पता होता है कि मेरी बेटी दहेज के साथ बेची जा रही है। उस बाजार में वह सुरक्षित रहेगी।

क्या गारंटी होती है। ऐसी सोच रखने वालोो की वो आपके रिश्तों को ईमानदारी और इंसानियत पूर्वक निभाएगें।क्यो आज भी ये पुरानी स्संकृति को लोग छोड नही पा रहे है।

क्यों अपनी बेडियों को शिक्षित और सक्षम करने के बाद भी दहेज देकर विदा करते है लोग

जो लोग सक्षम होते है वो तो आसानी से एसा कर लेते है। मगर उन लोगों का क्या जो दो वक्त का खाना नही खा पाते क्या उनकी आँखो में सपने नही पलते बडे घरो में जाने के कुछ मध्यवर्गीय परिवारों में शिक्षित तो हो जाती है लडकियां मगर अच्छे और नौकरी पैसा बाले घरो में शादी करने के लिए उनको कितने पापड बेलने पडते है। ताकि उनकी बेटी खुश और एसो आराम से जीवन निर्वाह करें ।पता नही कहाँ कहाँ वो माता पिता भाई अपना अपमान करा कर आते है दहेज इकट्ठा करते है बेटियों की शादी के लिए मगर दहेज लोभियों का फिर भी पेट नही भरता इतना पाने के बाद भी और एक दिन उसकी बेटी मार दी जाती है।

भूखा रखा जाता है।मार पिटाई की जाती है।

इतना होने के बाद भी लडकियां सहन करती रहती है। क्यों? क्या इसलिये ताकि उनके माता पिता को कोई परेशानी नहो अगर माता पिता के घर वापस जाती है तो कही माता पिता का सम्मान न घट जाए लोग कही कुछ बाते न करे इस डर को लडकियां कब तक सहेगी दहेज उत्पीड़न का दर्द कब अपने हक को बो वापस ले पाएँगी जो उनका है सुकून से जीने का क्यो बेटी आज भी बेटे के बराबर नही हो पा रही है।हक तो बेटा और बेटी दोनों को बराबर है जितनी ये दुनियाँ बेटों की है उतनी बेडियों का भी उतना ही हिस्सा है।

हमारे देश में दहेज उत्पीड़न की कानून व्यवस्था इतनी चरमराई हुई क्यों ।क्यो नही कोई एसे कडे कानून बनाएं गये जो इन होने वाले अपराधों का डर हो ।

जो भी कानून बना उस का इतना उल्लंघन क्यों

इस दहेज प्रथा को रोकनें के भरकस प्रयास क्यो नहीं। जब समाज में बेटियाँ ये कदम उठायेगी की मुझे वहाँ शादी नही करनी जहाँ दहेज के शिकारी हैं बेटियों को ये सोचना होगा की जब शादी से पहले जो दहेज की माँग इतनी रख सकता है तो शादी के बाद भी रख सकता है । और ऐसा होता है जब दहेज पूरा नही होता तो बेडियों को कोई भी आरोप लगा कर घर से निकाल जाता है या मारा जाता है जो इस काविल है बो सब केस लड लेते है जो इस काबिल. नही वो सह कर पीडा मर जाती है इसकी कमजोरी हमारे परिवार के लोगों की होती है। जो जानतें हुए भी बही करते है।कि दहेज देना और लेना अपराध है।फिर भी धकेलते है कुएं में बेडियों को इस अपराध के आधे हिस्सेदार माता-पिता भी होते है आधी बेटियाँ खुद ये जानते हुए भी तैयार हो जाती है कि दहेज माँगा जा रहा है । जब तक बेटियाँ तय नही करेंगी कि मुझे दहेज की माँग रखने वालों के परिवार में नही जाना तब तक ये दहेज हिंस्सा और अपराध खत्म नही होगा।

— शिखा सिंह

शिखा सिंह

जन्मस्थल - कायमगंज स्नातकोत्तर- के.एन.कालेज कासगंज. प्रकाशन- विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं में आलेख एवं कविताएँ प्रकाशित जैसे - लखनऊ से, उत्कर्ष, लखनऊ से रेवान्त पत्रिका ,जनसंदेश टाईम्सअखबार,अग्रधारा पत्रिका, अनुराग ,अनवरत, कविता संग्रह, भोजपुरी पंचायत, लोक चिंतक कवि हम - तुम कविता संग्रह और अन्य पत्रिकाओं में भी प्रकाशित सृजन पोर्टल दिल्दी बुलेटिन पोर्टल अन्य !! सम्पर्क-जे .एन.वी.रोड़ फतेहगढ़ फर्रुखाबाद (उ प्र,) पिन कोड- 209601 e-mail Shikhafth@gmail.com