गज़ल—–उनके अश्कों को
उनके अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं | उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं आप मानें
Read Moreउनके अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं | उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं आप मानें
Read Moreअज़नबी आज अपने शहर में हूँ मैं, वे सभी संगी साथी कहीं खोगये कौन पगध्वनि मुझे खींच लाई यहाँ, हम
Read Moreढलती शाम और डूबता सूरज, वही स्थान, वही समय, वही दृश्य । नदी के किनारे एक ऊंचे टीले के छोर
Read Moreमें हूँ पानी की वही बूँद, इतिहास मेरा देखा भाला | मैं शाश्वत, विविध रूप मेरे, सागर घन वर्षा हिम
Read Moreईशोपनिषद- काव्यभावानुवाद ईशोपनिषद के प्रथम मन्त्र ..”ईशावास्यम इदं सर्वं यद्किंचित जगत्याम जगत |” ”तेन त्यक्तेन भुंजीथा मा गृध कस्यविद्धनम
Read More“अब पोते को पालती, पहले पाली पूत” …वाह! क्या सच्चाई बयान करती कविता है |’ सत्यप्रकाश जी कविता पढकर भाव-विभोर
Read Moreकुछ तुम रुको कुछ हम रुकें चलती रहे ये ज़िंदगी कुछ तुम झुको कुछ हम झुकें ढलती रहे ये ज़िंदगी
Read Moreमेरे गीत तुम्हारा वंदन इन गीतों को मुखरित कर दो | निज उष्मित अधरों के स्वर दे इन गीतों में
Read Moreहरि अनंत हैं और सृष्टि अनंत हैं | इस अनंतता के वर्णन में कोई भी सक्षम नहीं है | परन्तु
Read Moreयदि जीव-सृष्टि का क्रमिक विकास ही सत्य है तो प्रश्न उठता है कि मानव के बाद क्या? व कौन? यद्यपि
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