ऐ मेरे हमसफ़र
क्या खूब क़त्ल तुम हर रोज कर रहे हो न शक की कोई गुंजाइश न सबूत छोड़ रहे हो ऐ
Read Moreक्या खूब क़त्ल तुम हर रोज कर रहे हो न शक की कोई गुंजाइश न सबूत छोड़ रहे हो ऐ
Read Moreखुली पलक में ख्वाब बुनो, और खुली आँख से ही देखो। सपने चाँदनी रात में नहीं, तप्त तपन की किरणों
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