वृक्ष
सहता रहा मौसमों की मार रह ख़ामोश धीमे-धीमे एक छतनार वृक्ष। सूखती रही नमी झरते रहे पात सूख गईं शाख़ाएँ
Read Moreकचरे का ढेर ढेर पर बच्चे जूठन बीनते नज़रें चुरा निगलते देखा है अक्सर इन में भविष्य भारत का मैंने
Read Moreरह-रह कानों में पिघले शीशे-से गिरते हैं शब्द “अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो”। ज़हन में देती हैं दस्तक
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