लघुकथा : जरूरी है
“पच्चीस रुपए प्रति किलो के हिसाब से हफ्ता भर के लिए ही चावल ले आना। घर में एक दाना नहीं
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Read Moreबरसात का मौसम था। सर्द हवा चल रही थी। आकाश में काले-काले बादल छाए हुए थे। आज शिखा और शिखर
Read Moreपानठेले के पास खड़े एक शख्स ने राजश्री चबाते हुए कहा- ” उसके बाप तो क्या ; बाप का बाप
Read Moreआज सुरभि का मन अच्छा नहीं लग रहा था। न तो पढ़ने-लिखने की उसकी इच्छा हो रही थी; और न
Read Moreधनराज बैलगाड़ी लेकर खेत जाने की तैयारी में था। अपने दोनों बैलों को कोटना में पानी भरकर भूसा खिला रहा
Read Moreसविता- ‘अजी ! सुनो न…! श्रद्धा नेअपनी लड़की श्वेता के लिए ईयररिंग्स खरीदी है। बड़ी खूबसूरत है जी। कल पहनी
Read Moreअप्रैल का महीना था। स्कूलों की वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित किये जा रहे थे। इस वर्ष तनु अपने स्कूल के
Read Moreक्षमा अपनी पढ़ाई कम्पलिट कर शहर से अपने गाँव आई। पूरे घर भर को उसका बेसब्री से इंतजार था। बड़ा
Read More“…हूँ…हूँ …हूँ …हूँ ….देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए… दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए…. ये गिला
Read Moreजैसे ही शिखर को पता चला कि चंदा हथिनी के दल का एक बुजुर्ग हाथी तालगाँव के समीप नर्रा जंगल
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