लघुकथा – जूठन
धनराज बैलगाड़ी लेकर खेत जाने की तैयारी में था। अपने दोनों बैलों को कोटना में पानी भरकर भूसा खिला रहा
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Read Moreसविता- ‘अजी ! सुनो न…! श्रद्धा नेअपनी लड़की श्वेता के लिए ईयररिंग्स खरीदी है। बड़ी खूबसूरत है जी। कल पहनी
Read Moreअप्रैल का महीना था। स्कूलों की वार्षिक परीक्षा परिणाम घोषित किये जा रहे थे। इस वर्ष तनु अपने स्कूल के
Read Moreक्षमा अपनी पढ़ाई कम्पलिट कर शहर से अपने गाँव आई। पूरे घर भर को उसका बेसब्री से इंतजार था। बड़ा
Read More“…हूँ…हूँ …हूँ …हूँ ….देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए… दूर तक निगाह में हैं गुल खिले हुए…. ये गिला
Read Moreजैसे ही शिखर को पता चला कि चंदा हथिनी के दल का एक बुजुर्ग हाथी तालगाँव के समीप नर्रा जंगल
Read Moreसौतेली माँ के दुर्व्यवहार की पीड़ा झेलती किरण एक शहर में ससुराल आई। सीधा-सादा पति तो मिला; पर सास-ननद की
Read Moreकड़ाके की ठंड पड़ रही थी। साँझ होते ही जंगल के सभी जानवर अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। ऐसा
Read Moreअपने गुरू महर्षि धौम्य की आज्ञा पाकर आज शाम को आरूणि खेत गया। खेत पहुँचकर देखा कि मेड़ कटी हुई
Read Moreचलो कुछ कर जाएँ, हम पंछी बन जाएँ। नील गगन उड़ते हुए। चींव-चाँव करते हुए।
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