कविता – गाँव जवार
गाँव जवार भूला सहचारयुवा भुला अपनी संस्कारकलियुगी रंग में रंगा संसारजग से रूठा कहाँ छुपा प्यार दशहरे की वो ग्रामीण
Read Moreगाँव जवार भूला सहचारयुवा भुला अपनी संस्कारकलियुगी रंग में रंगा संसारजग से रूठा कहाँ छुपा प्यार दशहरे की वो ग्रामीण
Read Moreहे मानव जग में तुँ है महानजग में मत बन तूँ नादानप्रेम बीज धरातल पे गिरानाप्रेम मोहब्बत की फसल उपजाना
Read Moreसाँसें थक कर अब चूर हुईशक्ति तन से भी दूर हुईमन ने क्या ख्वाब सजाये थेपर कोई काम ना आये
Read Moreतन की मैल गंगा में धो आयामन की मैल कब धोने जायेगाअन्तरात्मा जब तेरा है रे पापीतन धोने से कुछ
Read Moreमानव भूल गया संस्कारमतलब की लगती दरबारकोई किसी का ना है यारस्वार्थ के साथी हैं बस चार झुठे रिश्ते की
Read Moreशीशे की हवेली मेंपत्थर की रखवाली हैजालिम ही लुटेरा हैजालिम ही सिपाही हैकिससे करुँ फरियाद सनममतलब के सब रिस्ते हैंस्वार्थ
Read Moreबरगद पीपल ने एक सभा बुलाईअपनी वंशज की व्याथी सुनाईवन दुश्मन के खिलाफ छेड़ा अभियानतब लौटेगा जंगल का नया विहान
Read Moreतन्हा है मन तन्हा है जीवनतन्हा है अपना घर द्वारतन्हाई से लवरेज है यौवनतन्हा है मेरा सुना
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