कविता : इश्क
अब ये इश्क़ भी अजीब लत है तेरे ख़याल मुझे रंग देते हैं हर पल एक नए रंग में या
Read Moreअब ये इश्क़ भी अजीब लत है तेरे ख़याल मुझे रंग देते हैं हर पल एक नए रंग में या
Read Moreअच्छा लगता है यहां आम आदमी इतने हैं मैं इनके बीच खो जाता हूं इतनी भीड़ में अकेला, अनजाना यूं
Read Moreतुम्हारी रचनायें मैं आज भी बड़ी लगन से पढ़ता हूँ और पागल हो जाता हूँ उस हर एक रचना में
Read Moreआवारा बादल हूँ मैं मुझे एहसासों से तरबतर करता पानी हो तुम अपने आगोश में ले तुम्हें मस्त हवाओं से
Read Moreदिल से उठते हैं ये बुलबुले एहसासों का सैलाब लिये उड़ना चाहते हैं ये खुले आसमान पर मगर दिल के
Read Moreमुझ से अच्छा तो वो खिलौना होगा रुलाया जब भी किसी ने गले तूने फिर उसे ही लगाया होगा !
Read Moreदिल से उठते हैं ये बुलबुले एहसासों का सैलाब लिये उड़ना चाहते हैं ये खुले आसमान पर मगर दिल के
Read Moreहम तो हैं बीबी के सताये हुए जब पहले हम आशिक़ थे एक फूल देते थे और हफ़्तों के सपने
Read Moreएक हरे मटर की फली को छीला तो एक दाना मेरे हाथ में आ गिरा एक थाल में जा गिरा
Read Moreदिल करता है उसका सपना सजाऊं जिस में ….. सम्पूर्णता हो प्रवीणता हो सरलता हो कल्याण हो प्रगति हो सहनशीलता
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