कविता

कविता : अच्छा लगता है

अच्छा लगता है
यहां आम आदमी इतने हैं
मैं इनके बीच खो जाता हूं

इतनी भीड़ में
अकेला, अनजाना
यूं ही न जाने
पसीने से लथपथ
कहां जा रहा हूं

इतने शोर में
सोचने का वक्त नहीं
इनकी महक में
मेरी अहमियत ही नहीं

इस भीड़ में
मैं अपने आप को
ढूंढ़ता रहा
पर ढूंढ़ नहीं पाया
क्योंकि मैं भी तो आम आदमी हूं

यहां आम आदमी इतने हैं कि
मैं इनके बीच खो जाता हूं
अच्छा लगता है

मोहन सेठी ‘इंतजार’