सामाजिक

दहेज

शादी के शुभ अवसर पर माता पिता व अन्य रिश्तेदार उपहार स्वरुप कुछ सामान भेंट देने की परंपरा का ही विकराल रुप दहेज है | नवविवाहित जोड़े अपनी गृहस्थी बसा रहे हैं तो कुछ सहयोग करने की प्रथा अब सुरसा के मुंह की तरह फैल गई है | लड़के के माता पिता की ईच्छा रहती है कि लड़के के जन्म से लेकर पढाईव तक और शादी सभी खर्च लड़की वाले ही करें .लाखों रुपय नकद कार व अन्य साजोसामान सभी देने के बाद भी मांग बढती जाती है पूरी ना होने पर बहु को प्रताड़ित करना जलाना घृणित कर्म को अंजाम देते हैं| गरीब मध्यम वर्गीय पिता सब कुछ बेच कर भी बेटी को बचा नहीं पाता .तब हताश वह भी इहलीला समाप्त कर लेता है |

लड़कियां शिक्षित पैरों पर खड़ी होतो भी वे शिकार होती हैं .टीके में लाखों नकद जैवर ना जाने क्या क्या .पैसे वाले परिवार देते है पर बेचारे गरीब पिता .इसी दहेज ना देना पड़े के डर से कई लोग कन्या भ्रुण हत्या अथवा जन्मते ही मार देते हैं | लड़की को अंत पंत मरना ही है पहले मार दें ताकि पीड़ा कम हो ; आजकल के जमाने में लड़कियां भी पढ रही है तरक्की कर रही हैं उनकी परवरिश में भी उतना ही खर्चा आता है पर वे किससे कहें मांगै लडके वाले सर ऊंचा किये श्रैष्ठ और लड़की वालों की पगड़ी उनके पैरों में क्यू उनके सुर्खाब के पर लगै है | राजस्थान में या अन्यजगह भी हो सकती है लड़की के परिवार वाले लड़के के परिवार के सदस्यों के पैर छूते हैं चाहे वे उम्र में बड़े ही क्यूूं ना हो मैने मेरे बेटे की सास से कभी पैर नही छुवाये क्यूं भी उन्होंने जिगर का टुकड़ा दिया है वे निम्न कैसे हुवे .

रामायण में भी राम सीता के विवाहोपरांत विदाई के समय जनक जी राजा दशरथ को पैर छूने लगै तो दशरथ जी ने कहा कि आप क्यू झुकते हैं आपने तो कन्या दी है हमने ली है तो देने वाला महान हुवा नकि लेने वाला तो महान तो लड़की वाले हुवे जो धन दौलत के साथ अपनी बेटी दे कर खाली हे रहै हैं | पढे लिखे समझदार उच्चपदस्थ लड़के भी दहेज मांगते हैं तब बहुत दुख होता है जरा भी स्वाभिमान नहीं बाहुबल पर भरोसा नहीं है अपनी गृहस्थी खुद बसाओ पकी पकाई खाना चाहते है |

इस समस्या का समाधान स्वयं लड़कियां ही कर सकती हैं वे संकल्प लें दहेज विरोधी से ही शादी करेंगी बराबर कंधे से कंधा मिला कर कमा कर घर बसायें. कहीं कहीं लड़कियां खुद चाहती हैं मां बाप से जितना बटोर सकें लेलें ये भाव गलत है |पैसा या प्यार में पैसे को प्रधानता देते है ,पर रिश्तों में खटास पड़जाती है | स्वेछा से जो माँ बाप देदे वो ले और माँ बाप बेटी को देते ही रहते है हमारे यहाँ कहावत है की :- बेटी बूढी होती हे दहेज नहीं और ….बेटी और मकान में जितना लगावो कम है | फोट्टा { गोबर ] गिरेगा तो कुछ यानि माटी लेकर ही उठेगा | पढ़ीलिखी समझदार बेटियों को इन कहावतों को झुठला कर पैसे को नहीं परिवार के प्रेम को महत्व देना चाहिए | लड़के भी दहेज़ रूपी दानव  को जला दे स्वाभिमान और सुख से जिए और जीने दे जो सुख पसीना बहा कर कमाई चीजों से मिलेगा वो इसमें नहीं जिए और जीने दे |

गीता पुरोहित
जयपुर राजस्थान

गीता पुरोहित

शिक्षा - हिंदी में एम् ए. तथा पत्रकारिता में डिप्लोमा. सूचना एवं पब्लिक रिलेशन ऑफिस से अवकाशप्राप्त,

One thought on “दहेज

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह लाजवाब सृजन

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