कविता *वर्षा वार्ष्णेय 19/12/201820/12/2018 उम्मीदों के चिराग उम्मीदों के चिराग , आज भी हैं बेहिसाब । क्या हुआ जो रात एक गुजर गई । मौसम के मिजाज Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 19/12/201820/12/2018 घनी चादर आंसुओं की घनी चादर में जाने क्यों आज भी जिंदा हूँ । मचल रहा है बाबरा मन , रहगुजर राह Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 21/11/2018 कविता सोचती हूँ कुछ कविता लिखूँ तुम पर कुछ गीत भी लिखने को दिल करता है । शब्द नहीं मिल रहे Read More
अन्य *वर्षा वार्ष्णेय 21/11/2018 अवसाद जिंदगी भी कितने रंग बदलती है ।जब भी हम सोचते हैं कि सब कुछ अच्छा चल रहा है ,अचानक एक Read More
लघुकथा *वर्षा वार्ष्णेय 11/11/2018 श्रद्धा श्रद्धा , हेलो ,दीपाजी वो अगले हफ्ते जो कार्यक्रम होना था किसी वजह से केंसिल हो गया है ।आप चिंता Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 11/11/2018 प्यार प्यार का अर्थ बहुत व्यापक होता है ।जीवन का सार सिमटा हुआ है इस ढाई शब्द में । किसी के Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 11/11/2018 जिंदगी भूल गया जो अपना पथ फिर मंजिल का है भान कहाँ । काँटों पर चलकर ही तो मिल पाता है Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 22/10/201822/10/2018 कविता जिंदगी की वीरानियों को समेटने की नाकाम कोशिशें , ले आती हैं इंसान को जब कभी दोराहे पर बिखर जाता Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 22/10/2018 बलात्कार क्या से क्या आज की कहानी हो गयी , हर तरफ चर्चा रेप का दुनिया दीवानी हो गयी । भाषणबाजी Read More
कविता *वर्षा वार्ष्णेय 27/09/2018 गीत भूला बिसरा गीत हूँ मैं , जब चाहा गुनगुना लिया । खुदा की कोई भूल हूँ मैं , जब चाहा Read More