उपन्यास : शान्तिदूत (छत्तीसवीं कड़ी)
बोलने के लिए अवसर मिलते ही कृष्ण ने महाराज को सम्बोधित करके किन्तु राजसभा की ओर मुख करके कहना प्रारम्भ
Read Moreबोलने के लिए अवसर मिलते ही कृष्ण ने महाराज को सम्बोधित करके किन्तु राजसभा की ओर मुख करके कहना प्रारम्भ
Read Moreकृष्ण के आने से पहले ही राजसभा में सभी लोग उपस्थित हो गये थे और अपने-अपने स्थान पर बैठे थे।
Read Moreअगले दिन प्रातःकाल कृष्ण और सात्यकि नित्यकर्मों से निवृत्त हुए। फिर राजसभा में जाने के लिए तैयार होने लगे। वहां
Read Moreअतिथि शाला में सात्यकि और अपने सारथी के निवास की व्यवस्था देखकर कृष्ण अकेले ही अपनी बुआ कुंती से मिलने
Read Moreकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का सिर काटने के दृश्य को याद करके सब भयभीत हो गये। उन्होंने देखा
Read Moreकृष्ण के स्वागत से लौटते हुए दुर्योधन के मन में बहुत रोष था। वह अपने रोष का प्रदर्शन करना नहीं
Read Moreदो दिन पहले एक विडियो इन्टरनेट पर दिखाई दिया था, जिसमें एक इस्लामी आतंकवादी बहुत क्रूरता से एक अमेरिकी पत्रकार
Read Moreजब पांडवों का दूत यह समाचार लेकर हस्तिनापुर पहुँचा कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण पांडवों की ओर से समझौते के लिए
Read Moreजैसे ही रथ उपप्लव्य नगर की सीमा से बाहर निकला, वैसे ही सात्यकि ने अपनी जिज्ञासा, जो उसने बहुत समय
Read Moreपांडवों के जाते ही कृष्ण ने सात्यकि को बुलवाया। सन्देश मिलते ही वह उपस्थित हो गया। कृष्ण ने उनसे कहा-
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