नवगीत : बैठ अनाड़ी
चाय-पान की गुमटी डाले हरिया अपने बच्चे पाले बेच रहा है पान-सुपाड़ी गप्प लड़ाए बैठ अनाड़ी निकला सूरज हुए उजाले
Read Moreचाय-पान की गुमटी डाले हरिया अपने बच्चे पाले बेच रहा है पान-सुपाड़ी गप्प लड़ाए बैठ अनाड़ी निकला सूरज हुए उजाले
Read Moreदादी पहन पुराना लुग्गा बेच रही है सुन्दर फुग्गा कहती आओ मेरे बच्चे नन्हें-मुन्ने दिल के सच्चे केवल पाँच रुपैया
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