यात्रा वृतांत : छुक छुक रेल
फिर वहीँ स्टेशन, वही रेल, वही पतली पट्टी वाली लोहे की डगर। चढ़ते उतरते धक्का मुक्की करती पसीने की कमाई
Read Moreफिर वहीँ स्टेशन, वही रेल, वही पतली पट्टी वाली लोहे की डगर। चढ़ते उतरते धक्का मुक्की करती पसीने की कमाई
Read Moreइलाहाबाद के मोतीलाल नेहरू नेशनल इंजीनियरिंग इंस्टीटयूट सरकारी कॉलेज के कम्प्यूटर विभाग में, सहायक प्रोफेसर पद पर कार्यरत पतिदेव को
Read Moreउस असुर की ख़ामोशी देखकर भोले बाबा अंतर्ध्यान होना ही चाहते थे कि वह कुटिल मुस्कान लिए कह उठा ”
Read Moreथोड़ी देर तक हम लोग उसी नदी के किनारे किनारे चलते रहे । वह एक पहाड़ी नदी थी जिसमें पत्थर
Read Moreसीढियां उतरते हुए बाएं किनारे पड़ने वाले मंदिरों में शीश नवाते हाथ जोड़ते हम लोग आगे बढ़ रहे थे ।
Read Moreथोड़ी ही देर में हम लोग चौक में जा पहुंचे थे । यह चौक बस स्टैंड के समीप ही था
Read Moreभैरवघाटी से भैरव बाबा के दर्शन कर हम सभी मित्र आगे बढे । अब आगे …………………………. सुबह के लगभग सात
Read Moreभैरवघाटी से भैरव बाबा के दर्शन कर हम सभी मित्र आगे बढे । अब आगे …………………………. हम लोग सोने तो
Read Moreभैरवघाटी से भैरव बाबा के दर्शन कर हम सभी मित्र आगे बढे । अब आगे …………………………. ढलान से उतरना काफी
Read Moreपुर्वकथा सार : हम कुछ मित्र मुंबई से माता वैष्णोदेवी के दर्शन कर भैरव घाटी की ओर बढे । अब
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