इंसानियत – एक धर्म ( भाग – अडतालिसवां )
थोड़ी ही देर में वह भारी वाहन धीरे धीरे चलते बंगले के गेट के सामने आ गया । जिस तरह
Read Moreथोड़ी ही देर में वह भारी वाहन धीरे धीरे चलते बंगले के गेट के सामने आ गया । जिस तरह
Read Moreइंसानियत – एक धर्म ( भाग – सैंतालिसवां ) तड़पते हुए कर्नल साहब अचानक फर्श पर गिर पड़े । उन्हें
Read Moreकिसी अनहोनी की आशंका से नंदिनी संशकित हो उठी थी लेकिन मन के भाव अपने अंतर में दबाते हुए नाराजगी
Read Moreनंदिनी की भीगी पलकें किसी से छिपी नहीं थीं । फिर भी बरामदे की सीढ़ियां चढ़ते हुए उसने बड़ी सफाई
Read Moreबिरजू और परी को बंगले के अंदर जाते हुए नंदिनी कुछ देर खड़ी देखती रही । मुनीर के दिमाग में
Read Moreमुनीर के इतना कहते ही परी ने खुलकर अपनी नाराजगी का इजहार किया और मुंह फुलाकर बिसूरते हुए बोली ”
Read Moreमुनीर ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए समझदारी से काम लिया और उसे पुचकारते हुए दुलार करते हुए
Read Moreमुनीर को पुकारते हुए ‘ परी ‘ रिक्शे से काफी नीचे की तरफ झुक गयी थी । अपने ही उधेड़बुन
Read Moreभीड़ की अधिकता की वजह से मुनीर को आगे बढ़ने में दिक्कत हो रही थी जबकि उस यात्री की बात
Read Moreमुनीर ने अंदर शौचालय का दृश्य देखकर अपना सिर धुन लिया । अंदर उस छोटी सी जगह में भी पांच
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