इंसानियत –एक धर्म ( भाग — अठारहवां )
अदालत कक्ष से जज साहब के बाहर जाते ही कक्ष में खुसर पुसर शुरू हो गयी । पत्रकारों में जैसे
Read Moreअदालत कक्ष से जज साहब के बाहर जाते ही कक्ष में खुसर पुसर शुरू हो गयी । पत्रकारों में जैसे
Read Moreवकिल राजन पंडित की दलीलें सुनकर दर्शकों में से कुछ हैरान तो कुछ उत्साहित हो रहे थे । लोगों में
Read Moreअदालत कक्ष में फैला सन्नाटा और गहरा गया था । सबकी निगाहें सरकारी वकिल महाजन की तरफ लगी थीं और
Read Moreअसलम से मिलकर राखी के साथ वकिल साहब पुनः अपने दफ्तर में लौट आये जो कचहरी से ही लगा हुआ
Read Moreअस्पताल से कचहरी की तरफ बढ़ रही राखी के मन में विचित्र सा अंतर्द्वंद चल रहा था । बेचैनी स्पष्ट
Read Moreराखी पता नहीं कितनी देर तक यूँ ही बैठी रही और दिमाग के हवाई घोड़े दौड़ाती रही लेकिन उसे कोई
Read Moreसुबह लगभग ग्यारह बज चुके थे जब राखी कचहरी परिसर में पहुंची थी । परिसर में लोगों की आवाजाही शुरू
Read More” हाँ रमेश ! उस इंसानियत के पुजारी का नाम असलम ही है । ” राखी हैरान हो रहे रमेश
Read Moreबड़ी देर तक राखी के कानों में उसके दिमाग द्वारा की गई सरगोशी गूंजती रही और फिर अचानक वह एक
Read Moreराखी की बात सुनकर पांडेयजी थोड़ा चौंकते हुए से बोले ” क्या कह रही हो बेटा ? उसे कैसे बचा
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