उपन्यास अंश

इंसानियत –एक धर्म ( भाग — दशम )

 बड़ी देर तक राखी के कानों में उसके दिमाग द्वारा की गई सरगोशी गूंजती रही और फिर अचानक वह एक झटके से उठी । ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई ठोस निर्णय ले चुकी हो लेकिन फिर अगले ही पल रमेश के ख्याल ने उसके बढ़ते कदमों को जैसे थाम लीया हो । खौलते हुए पानी में जैसे किसीने ठंडा पानी मिला दिया हो । उसका सारा उबाल खत्म हो गया । हवा का साथ पाकर आसमान छूने का हौसला रखने वाले गुब्बारे का जैसे किसीने हवा ही निकाल दिया हो वैसे ही अब उसका सारा जोश उत्साह रमेश के हालात पर नजर पड़ते ही उड़न छू हो गया था ।
 अब भले ही उसके पांव हकीकत में यथार्थ के धरातल से टकरा रहे हों लेकिन मंसूबे अब भी उसके बदले नहीं थे । वह तय कर चुकी थी कि उसे किसी भी हाल में असलम को बचाना है और फिलहाल उसके दिमाग में बस एक सूत्रीय कार्यक्रम ही चल रहा था । गाहेबगाहे रमेश का ख्याल भी उसके मन को झकझोर देता लेकिन उसे पता था कि उसका इलाज शहर के बेहतरीन डॉक्टरों की निगरानी में हो रहा है जिसमें उसका कोई वश नहीं था ।  रमेश की सेहत में सुधार भी उसे बल प्रदान कर रही थी ।
 पांडेय जी की सहृदयता से भी उसके मन में उत्साह का संचार हुआ था । तभी उसके मन में ख्याल आया ‘ सब कुछ तो ठीक है लेकिन रमेश के मन में इस पूरी घटना को लेकर क्या चल रहा है ? ‘ यह तो उसने जाना ही नहीं था । हालांकि उसे पूरा यकीन था कि सारी बात जानने और समझने के बाद वह पूरी तरह उसका ही समर्थन करेगा फिर भी उसका मंतव्य समझना जरूरी था । अभी पांडेय जी को पता नहीं कितनी देर लगेगी  तब तक क्यों न रमेश से मिलकर उसके मन को ही टटोलकर देखा जाए । बस सोचने की देर थी कि अगले ही पल राखी के कदम स्वतः ही सघन चिकित्सा कक्ष की तरफ मुड़ गए और एक मिनट बाद ही वह सघन चिकित्सा कक्ष में रमेश के बेड के नजदीक बैठी उससे बातें कर रही थी ।
 उसे देखते ही रमेश का चेहरा खिल गया था । अधरों पर मुस्कान बिखेरते हुए रमेश अपनी सारी पीड़ा लगभग भूल चुका था । अब इस समय वह खुद को सबसे सौभाग्यशाली समझ रहा था । राखी की अवस्था देखकर उसने अंदाज लगा लिया था कि शायद वह रात भर ठीक से सो भी नहीं सकी है । और इसी अंदाजे की वजह से उसके दिल में राखी के प्रति इज्जत और बढ़ गयी थी और वह उसे कृतज्ञ नजरों से देख रहा था जबकि राखी के अंतर्मन में दुसरा ही अंतर्द्वंद चल रहा था । वह सोच रही थी ‘ पता नहीं रमेश क्या सोच रहा होगा ? क्या एक मुसलमान की तरफदारी उसे रास आएगी ? ‘ और उसकी एक खास वजह भी थी । वजह थी उसकी कट्टर  और आक्रामक हिंदुत्व वादी सोच ! हिंदुत्व की समर्थक तो वह स्वयं भी है लेकिन उसकी नजर में इंसानियत ही सच्चा हिंदुत्व है । इंसानियत से बढ़कर कोई धर्म नहीं लेकिन क्या रमेश भी इस बात को स्वीकार कर पायेगा ?  सारी हकीकत जानकर उसकी कैसी प्रतिक्रिया होगी ? उसका मस्तिष्क तरह तरह के कयास लगा रहा था कि तभी रमेश ने उसके हाथों को थामते हुए उसे आवाज लगाई ” राखी ! क्या बात है ? कहाँ खोई हुयी हो ? कोई बात है क्या ? “
राखी को लगा यही सही मौका है जब वह उसे हकीकत बता सकती है और उससे मदद मांग सकती है इंसानियत की रक्षा के लिए । तुरंत ही उसने रमेश को जवाब दिया ” नहीं तो ! खैर छोड़ो ! ये बताओ अब कैसे हो ? सिर में ज्यादा दर्द तो नहीं हो रहा ? “
 रमेश मुस्कुराया ” अरे ! मुझे क्या हो सकता है ? सावित्री के रहते किसी सत्यवान का भला क्या बिगड़ सकता है ? मेरी सावित्री मेरे साथ जो है । सारा दर्द सारी दुख तकलीफें तो कभी की दुम दबाकर भाग गई हैं और तुम अब पुछ रही हो ? “
 प्यार से कहे गए उसके बोल राखी को अंदर तक खुश और तृप्त कर गए ।
 ” अगर आप बुरा न मानें तो एक बात पुछूं ? ” राखी ने शांत स्वर में रमेश से कहा ।
 रमेश भला कब इंकार करता ? मुस्कुराते हुए बोला ” एक क्या तुम्हें सब कुछ जानने का अधिकार है । पुछो क्या पुछना चाहते हो ? “
 ” रमेश ! यह बताओ ! कल क्या क्या हुआ जानते हो ? ” राखी ने जानना चाहा था ।
 रमेश ने भी राखी के मनोभावों से अनजान मुस्कुराते हुए ही जवाब दिया ” जानना क्या है ? मैं तो यही जानकर बहुत खुश हूं कि ईश्वर की कृपा से तुम सही सलामत हो और में भी बच गया हूँ । बस अब मुझे और कुछ भी जानने की इच्छा नहीं है । बस मैं ईश्वर के चमत्कार के आगे नतमस्तक हूँ और उसको प्रणाम करते हुए उसका धन्यवाद करता हूँ । यहां से निकल कर सबसे पहले मैं मंदिर ही जाना चाहूंगा । लेकिन तुम यह सब क्यों पुछ रही हो ? “
  राखी ने उसकी आँखों में झांकते हुए प्यार से पुछा ” क्या तुम यह नहीं जानना चाहोगे कि आखिर यह चमत्कार हुआ कैसे ? वो कौन भलामानुष था जिसकी वजह से आज मैं तुमसे यहां बैठकर बात कर पा रही हूं ? “
 रमेश मुस्कुराया ” वैसे मेरी गड़े मुर्दे उखाड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं होती लेकिन फिर भी अगर तुम बताना ही चाहती हो तो चलो देर न करो । बता ही दो । कौन है वो महापुरुष ? “
 राखी भी होठों में ही मुस्कुराते हुए बोली ” रमेश ! सचमुच वह महापुरुष ही है । बल्कि मेरे लिए तो वह उससे भी चार कदम आगे जाकर देवता बन गया है । ” और फिर राखी ने उसे सिलसिलेवार तरीके से सब बता दिया ।
पूरी बात सुनने के बाद रमेश के चेहरे पर कृतज्ञता और राखी के लिए प्रशंसा के भाव उभर आये थे । बोला ” मैं उस महापुरुष से मिलना चाहता हूं । कहाँ है वह ? उससे मिलकर मैं उसका शुक्रिया अदा करना चाहता हूं । क्या नाम है उस सिपाही का ? “
राखी ने जवाब दिया ” अब उससे मिलना थोड़ा मुश्किल है क्योंकि फिलहाल तो वह पुलिस की हिरासत में है । हाँ ! अगर तुम चाहो तो उसे बचाया जा सकता है । कहो ! क्या उसे बचाने में तुम मेरा साथ दोगे ? “
 रमेश ने मासूमियत से उत्तर दिया ” तुम जो भी चाहो मैं हर फैसले में तुम्हारे साथ हूँ । बस मुझे यह बताओ मुझे करना क्या है ? और हां ! अभी तक तुमने मुझे उसका नाम नहीं बताया । “
 मुस्कुराती हुई राखी अब गंभीर हो गयी थी । शांत स्वर में उसने जवाब दिया ” नाम में क्या रखा है रमेश ? हमारे लिए क्या इतना काफी नहीं है कि अपना सब कुछ दांव पर लगाकर उसने हमारी हिफाजत की है ?  इंसानियत की रक्षा की है । फिर भी तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं उस बहादुर सिपाही और इंसानियत के पुजारी का नाम ‘ असलम ‘ है । “
 ” क्या ? ” रमेश लगभग चीख ही पड़ा ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।