कविता

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पतली गली में

शहर कीपतली गली,बड़ी उदासडरावनी,लोग शब्दहीन बेचैनभ्रम पालेमकान कीखिड़की सेमुँह निकाले झाँकते इधर -उधर! पतली गली मेंएक दुकानदुकान पर बैठापतला इंसानसंभाल

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कविता

हे राम जी ! मेरी गुहार सुनो

हे राम जी! मेरी पुकार सुनोएक बार फिर धरा पर आ जाओधनुष उठाओ प्रत्यँचा चढ़ाओकलयुग के अपराधियों आतताइयों, भ्रष्टाचारियों परएक

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