गीतिका/ग़ज़ल जयनित कुमार मेहता 19/09/2022 ghazal, jaynit, गज़ल, जयनित ग़ज़ल जितना बढ़ते गए गगन की ओर उतना उन्मुख हुए पतन की ओर साज-श्रृंगार व्यर्थ है तेरा दृष्टि मेरी है तेरे Read More
गीतिका/ग़ज़ल जयनित कुमार मेहता 22/07/2020 ghazal, jaynit, गज़ल, जयनित ग़ज़ल सितम ए आसमाँ, ऐसा ज़मीं पर हो नहीं सकता मेरे जीते-जी ये हो जाए बंजर, हो नहीं सकता यही सच्चाई Read More
गीतिका/ग़ज़ल जयनित कुमार मेहता 02/01/2016 गज़ल, जयनित ग़ज़ल सबके मन की गांठें खोले साल नया बिखरे रिश्तों को फिर जोड़े साल नया भूखे को दे रोटी, निर्धन को Read More