राज मुक्तक सुधा
गीत बनकर सखी मै निभाती रही/ प्रीति मे सज सदा दिल सजाती रही/ रीति दुनिया मज़ा बन लुभाती शमा/ शाम
Read Moreगीत बनकर सखी मै निभाती रही/ प्रीति मे सज सदा दिल सजाती रही/ रीति दुनिया मज़ा बन लुभाती शमा/ शाम
Read More[1] महक फूलो से उठती है पिरोए ख्वाब बैठे हैं , अजब की आरजू उनकी सजोए ख्वाब बैठे हैं/ गजब
Read More[1] माँ के हाथों की रोटी बड़ी प्यारी लगती है, माँ की मुस्कुराहट भी फुलवारी लगती है/ उपवन का पत्ता-पत्ता
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