ग़ज़ल – बीते कल को हमसे वो अब चुराने की बात करते हैं
सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे ना जाने क्यों वो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते
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