इतिहास

पौराणिक प्रलय- मिथक या इतिहास? (दूसरी क़िस्त)

मित्रो, आचार्य चतुरसेन की पुस्तक ‘वय: रक्षामः’ पर आधारित आपने मेरे पिछले लेख में पढ़ा कि पौराणिक प्रलय क्या थी. अब आगे पढ़िए।

हालांकि प्रलय ने सभी कुछ तहस-नहस कर दिया था परन्तु फिर भी मनु द्वारा बसाई सुषा नगरी, जो कि मन्युपुरि कहलाती थी, उसके कुछ भाग जलमग्न नहीं हुए थे। फिर भी नगरी पूरी तरह से खाली हो चुकी थी, जिसके कारण कई फुट मोटी धूल-मिट्टी जमा हो गई थी। बाद में जब अदिति का सबसे बड़ा पुत्र वरुण, जो कि सूर्य का भाई भी था, इस नगरी में आया। उसने सुषा नगरी से धूल मिट्टी को साफ़ करवाया, प्रलय के कारण जलभराव हो गया था, उसने नहरें खुदवा के जल को समुद्र में बहा दिया। जिस तरह सूर्य से आर्य जाति का निर्माण हुआ, उसी प्रकार वरुण देव से सुमेर जाति का निर्माण हुआ, यही वरुण के वंशज सुमेरियन ईरान के शासक हुए। इन्हीं सुमेरियन, जिसे वरुण देव ने सुषा नगरी में बसाया था, को पुरातत्व वैज्ञानिकों ने प्रोटोलामईट सभ्यता का विकसित रूप माना है।

एक प्रकार से दुबारा श्रृष्टि रचने वाले वरुण देव को ही ब्रह्मा नाम दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक मृतप्राय नगर को दुबारा बसाया था। वरुण देव को लार्ड क्रियेटर भी कहा जाता है जिसका अर्थ होता है बनाने वाला। वरुण देव का जिक्र कई प्राचीन ग्रंथों में भी है जैसे अवेस्ता में ‘अरुजंद’ नाम से, इलाही भी वरुण देव को ही कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है- इलावत के पूज्य देव। कई प्राचीन ग्रंथो में कहा गया है कि वरुण देव ने पृथ्वी और आकाश को सम किया, वरुण देव ने रुके हुए जल को नहरों द्वारा समुद्र में बहाया और भूमि को खेती लायक बनाया।

भारतीय प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद के सातवें मंडल के 34वें सूक्त के 11वें मन्त्र में भी वरुण देव को नदियों को रूप देने वाला कहा गया है।

वरुण देव को नई दुनिया रचने (बसाने) और आदित्यों में ज्येष्ठ होने के कारण इन्हें ब्रह्मा भी कहा गया, ब्रह्मा अर्थात सबसे बड़ा। इन्होने नदिया बनाकर जल को बाँट दिया, जिस कारण इन्हें ‘नारायण’ भी कहा गया जिसका अर्थ होता है जलों को बांटने वाला, क्योंकि पानी को संस्कृत में ‘नारा’ भी कहा जाता है।

वरुण देव ने अर्थात ब्रह्मा ने ब्रहमाण्ड अर्थात अपने राज्य के दो हिस्से किये- एक ऊपर का पर्वतीय खंड और नीचे का भूमि खंड, ऊपर का खंड स्वर्ग और नीचे का भूमि खंड भूलोक कहलाया, ऐसा मत्स्य पुराण में वर्णित है।
अंग्रेज इतिहासकार जेनिसिस ने भी इस बात की पुष्टि की है कि वरुण देव ने ही जल से जल को अलग किया नहरें निकाली। उसके अनुसार ‘इलाही ने कहा की जल से जल अलग होना चाहिए’, स्वर्ग के जलो को एक जगह एकत्रित होने दो और शेष भूमि को सूखने दो।

प्राचीन ईरानी इतिहासकार भी इस बात को मानते हैं की वरुण ही नई श्रृष्टि के रचयिता हैं। इस बात की पुष्टि इससे होती है कि प्राचीन ईरान के कापडोसिया प्रान्त में इंद्र और वरुण देव के शपथ शिलालेख मिले हैं।

उस समय सुषा नगरी का नाम अमरावती था और समूचे प्रदेश का नाम अमरदेश था। कहा जाता है कि अब भी अमरों के वंशज अमरेह जाति बसती है। बाद में इस प्रदेश का नाम ईला के नाम से जो कि मनु की पुत्री थी इलावत पड़ा. आज कल यह प्रदेश किरमान प्रदेश कहलाता है।

इन्हीं ब्रह्मा अर्थात वरुण के पुत्र अंगिरा ऋषि और भृगु ऋषि हुए ।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?