इतिहास

पौराणिक प्रलय – मिथक या इतिहास ? (पहली क़िस्त)

दुनिया के सभी प्रमुख धर्म ग्रंथों में ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में ‘प्रलय’ आई थी। इस प्रलय का हिन्दू धर्म ग्रंथों में ऐसा वर्णन है कि मनु ने एक बेड़ा बनाया और उसमें दुनिया के सभी जीव जंतुओं को एकत्र किया और उन्हें प्रलय के प्रकोप से बचाया। बाद में इन्हीं बचे हुए प्राणियों से आगे वंश चले। इसी प्रलय की कथा बाइबिल और कुरान में आई है, जब ‘नूह’ बेड़ा बनाते हैं और वे भी प्राणियों को प्रलय के प्रकोप से बचाते हैं। अवेस्ता में भी इसी घटना का होना दर्ज है।

विभिन्न प्राचीन धार्मिक पुस्तकों में एक ही घटना का दर्ज होना आश्चर्यचकित करता है। यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि प्रलय की घटना क्या केवल एक कपोल कल्पना भर है, जो सभी प्राचीन पुस्तकों में दर्ज है या इसके पीछे कोई सच्चाई है? क्या तथाकथित ‘प्रलय’ वैसी ही थी जैसी कि प्राचीन ग्रंथो में वर्णित है अथवा इस घटना को बढ़ा चढ़ा के वर्णन किया गया है? जिसे दैवीय कह कर और मनु (नूह) को ईश्वर भक्त कह कर इस ऐतिहासिक घटना को धर्म या मजहब का चश्मा पहना दिया गया है?

इस ऐतिहासिक प्रलय की घटना को आचार्य चतुरसेन ने भी अपनी पुस्तक में बड़े ही प्रामाणिक तौर पर वर्णित किया है, जो धार्मिक पुस्तको की कपोल कल्पनाओं के विपरीत सत्य के बहुत निकट प्रतीत होता है। उन्हीं के प्रमाणों को लेकर हम लेख को आगे बढ़ाते है और जांचते हैं कि वर्णन सत्य के कितना निकट है।

यह घटना लगभग 3200-3300 ई.पू. आज के मेसोपोटामिया और पर्शिया के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में हुई थी। पर्शिया के पश्चिमोत्तर में अर्मिनिया प्रदेश है, वहां के बर्फीले पर्वतों से निकल कर फरात नदी मेसोपोटामिया में आई है। यह मेसोपोटामिया की बहुत विशाल विस्तार वाली नदी है। मेसोपोटामिया में एक और प्रमुख नदी है शतुल, यह ऐसी नदी है जिसमें समुद्र के जहाज भी आ जा सकते थे। कहा जाता है कि प्राचीन बसरा शहर, जो कि 6ठी शताब्दी ई. में बसाया गया था, उसमें एक लाख बीस हजार नहरें थी जिनमें नावें चला करती थीं। इससे यह समझ सकते हैं कि ये नदियाँ कितनी विशाल और गहरी रही होंगी। संभवतः बर्फ के बाँध टूटने के कारण इसी दजला नाम की नदी में भयंकर बाढ़ आई और उन सभी प्रदेशों को, जो फारस की खाड़ी और कश्यप सागर (आज का केस्पियन सी) के बीच बसे थे, डुबो दिया।

परन्तु इन प्रदेशों में कुछ ऐसे स्थल भी थे जो काफी ऊँचे थे, समुद्र से लगभग 17-18 हजार फीट, जहां संभवतः जल नहीं पहुँच पाया था, पर जो मैदानी और निचले भूभाग थे, वे पूरी तरह से नष्ट हो गये थे। जीव जंतु, मानव बस्तियाँ, वनस्पति आदि सभी पूरी तरह से नष्ट हो गयी थीं।

इनमें नष्ट होने वाली मुख्यतः अरार्ट जाति थी, जो मैदानी इलाके में बसती थी। यह जाति महाराज अत्यराती जनन्त्पति की वंशज थी। महाराज अत्यराती के विषय में हम नीचे विस्तार से जानेंगे। इस प्रलय से सारा ईरान जलमग्न हो गया और वह मृत्यु लोक कहा जाने लगा। इस मृत्यु लोक का वर्णन पुराणों में भी है।

इस प्रलय का कारण था वहाँ के किसी ज्वालामुखी का विस्फोट का होना। इसी ज्वालामुखी विस्फोट के कारण बर्फ की चट्टानें टूट गयी और पिघल कर दजला नदी में गिरीं, जिससे आई प्रलयंकारी बाढ़ और कश्यप सागर के उफान ने समूचे ईरान को जलमग्न कर दिया।
कश्यप सागर प्रदेश में एक स्थान है बाकू, जहाँ आज भी पृथ्वी से अग्नि निकलती है। इस स्थान को देखने सिकंदर भी गया था, यह पृथ्वी से निकलने वाली अग्नि संभवतः उसी ज्वालामुखी की अवशेष है।

मत्स्यपुराण में इस प्रलयकारी घटना के वर्णन में कहा गया है की ‘मनु’ को एक मत्स्य (मछली) मिली जिसने उन्हें बचाया। अब यह ‘मत्स्य’ कौन थी, इसको भी जान लीजिये। दरअसल यह मत्स्य कोई मछली नहीं थी बल्कि यह मानव ही थे जिनको ‘मत्स्य’ कहा जाता था और ये बहुत अच्छे नाविक थे। बेबिलोनिया की दंतकथाओं में इस जाति का जिक्र आता है। बेबिलोनिया में इन्हीं मत्स्य जाति के लोगों का प्राचीन काल से राज था। प्रलय के समय इन्हीं नाविक जातियों के राजा ने मनु की सहायता की और उसके परिवार और मवेशियों की रक्षा की।

इसके बाद मनु ने सुषा नगरी बसाई और अपनी राजधानी बनाई, जिसकी वैभवता का वर्णन पुराणों और प्राचीन ईरानियन प्राचीन पुस्तकों में किया गया है। बाद में यह नगरी भी उजड़ गई ।

प्रलय में जो अर्राट जाति नष्ट हुई थी, वह महाराज अत्यराती जनन्तपति की वंशज थी। वे चाक्षुस मनु के सबसे बड़े पुत्र थे। सीरिया में एक नगर अत्यरत (।कइतवज) भी इन्ही के नाम पर है और एक पर्वत का नाम भी अर्राट है जो इन्ही अत्यराती के वंशजों के नाम पर है।

चाक्षुस मनु के पांच पुत्र थे, सबसे बड़े अत्यराती, दुसरे अभिमन्यु (मनु), तीसरे उर, चैथे पुर और पांचवे तपोरत। अत्यराती चक्रवर्ती सम्राट थे उनके अधीन कई प्रदेश थे जिनमें बैकुंठ धाम जैसे प्रसिद्ध नगर भी थे जो एल्बरुज पर्वत पर ‘इरानियन पैराडाइज’ के नाम से आज भी प्रसिद्ध है।

दूसरे भाई थे अभिमन्यु या मन्यु या मनु (या नूह) प्राचीन अर्जनेम में मनु (।चीनउवद) ट्राय युद्ध के विजेता यही हैं। इन्होंने ही प्रलय के समय बेड़ा बनाकर अपने परिवारवालों और अपने मवेशियों की रक्षा की जिसका वर्णन मैंने ऊपर किया है। प्राचीन काव्य ‘ओडेसी’ में इन्हीं की गाथा है।

तीसरे भाई उर ने अफ्रीका, सरिया, बेबिलोनिया, आदि देशों को जीता। इन्हीं के वंशजो ने लगभग 2000 ईसा पूर्व अब्राहम को जीता था, जिसका उल्लेख ईसाईयों के ओल्ड टेस्टोमोनी (बाइबिल) में भी है। आज भी उर बेबिलोनिया का एक प्रदेश है। प्रसिद्ध अप्सरा उर्वशी इस उर प्रदेश की थी। ईरान के एक पर्वत का नाम उरल है, अफ्रीका का प्रदेश रायो-डी- ओरा है जो उर के नाम पर रखा गया है।
उर के पुत्र अंगिरा थे जिन्होंने अफ्रीका जीत लिया था और पिक्युना के निर्माणकर्ता थे, माना जाता है कि इन्हीं अंगिरा ने अथर्ववेद का संकलन करवाया था।

चौथे भाई पुर के नाम से ईरान के निकट एलबुर्ज के निकट पुरसिया नगर है, जो इनकी राजधानी थी, इन्हीं के नाम से ईरान का नाम पर्शिया पड़ा।

पांचवे भाई तपोरत ने भी ‘तपोरत’ नाम से अपना राज्य स्थापित किया। इनका प्रदेश तपोरिया कहलाया। तपोरत के राजा आगे चलकर देवराज कहलाये। इंद्र इन्हीं के वंशधर थे। आज कल तपोरत प्रदेश को मंजादीन कहा जाता है।

आज के वैज्ञानिक उस सभ्यता को प्रोटो इलामईट (ताम्र सभ्यता) कहते हैं। इसके अवशेष मैसोपोटामिया और उसके आस-पास के प्रदेशों में मिलते हैं। इस ताम्र सभ्यता के अवशेष कांस्य सभ्यता के अवशेषों के 6-7 फुट गहरे में मिलते हैं। इनके बीच 6-7 फुट चिकनी मिटटी की मोटी परत प्राप्त हुई है। यह चिकनी मिटटी की मोटी परत वही मिटटी की परत है, जो प्रलय यानि बाढ़ के साथ आई थी।

संजय कुमार (केशव)

नास्तिक .... क्या यह परिचय काफी नहीं है?

5 thoughts on “पौराणिक प्रलय – मिथक या इतिहास ? (पहली क़िस्त)

  • राहुल खटे

    पुराण भारत का इतिहास ही है, केवल आलंकारिकता के कारण वह काल्पनिक लगता है। भूगोल के अध्ययन की सहायता से इसकी पुष्टि होती हैं। बली राजा के द्वारा भगवान् विष्णु को तीन पग भूमी दान में देने की घटना उस समय हुई जब पृथ्वी पर मात्र दो ही खण्ड अस्तित्व में थे। इसीलिए तीसरा पग रखने की बारी आई तो बली को पाताल जाना पड़ा अर्थात अमेरिका जाना पड़ा।

  • Vijay Kumar Singhal

    अच्छा लेख केशव जी. पुरानों में जो मिथक हैं, उनमें से बहुतों के पीछे ऐतिहासिक घटनाएँ हैं. उनको शोध के बाद सामने लाने की आवश्यकता है. आपको बधाई.

    • केशव

      प्रणाम सिंघल साहब
      धन्यवाद

  • बहुत शानदार केशव भाई .

    • केशव

      प्रणाम कमल जी,

      धन्यवाद

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