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हिन्दू उग्रवाद उचित नहीं

पुणे में ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ नामक किसी संगठन के सदस्यों द्वारा एक मुसलमान साॅफ्टवेयर इंजीनियर की पीट-पीटकर हत्या कर दिये जाने की घटना के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा जा चुका है। घटना का मूल कारण केवल यह था कि कुछ लोगों ने, जिनमें उस इंजीनियर के भी शामिल होने का शक उस संगठन के सदस्यों को था, छत्रपति शिवाजी महाराज और बाल ठाकरे के बारे में बहुत अश्लील और आपत्तिजनक चित्र व्हाट्स एप नामक सोशल नेटवर्क मीडिया पर डालकर प्रचारित कर दिये थे।

हालांकि वह आपत्तिजनक पोस्ट लगाने का कार्य जिसने भी किया हो, उसे उचित नहीं कहा जा सकता और ऐसे कार्यों की प्रतिक्रिया होना भी स्वाभाविक है, लेकिन इस बहाने किसी की हत्या कर देना कभी सही नहीं ठहराया जा सकता, भले ही वह व्यक्ति उस कार्य में सीधे शामिल रहा हो। अपराधी को दण्ड देने की एक प्रक्रिया होती है, जिसका पालन किया जाना चाहिए। लोेकतांत्रिक व्यवस्था में किसी भी संगठन को इस तरह दंड देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। इसलिए उस संगठन के लोगों को कानून के अनुसार उचित सजा दी जानी चाहिए, जिन्होंने यह हत्याकांड किया।

लेकिन इस घटना पर हमारे तथाकथित राष्ट्रीय मीडिया द्वारा जो रवैया अपनाया गया, वह भी कम आपत्तिजनक नहीं है। यह पहली बार नहीं हुआ है कि धार्मिक या साम्प्रदायिक कारणों से किसी की हत्या की गयी हो। अनेक बार संघ कार्यकर्ताओं को केरल में साम्यवादियों और जेहादियों द्वारा मौत के घाट उतारा गया है। मुजफ्फरनगर में दो हिन्दू युवकों को मुस्लिम सम्प्रदाय की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डाला गया था, जो आगे चलकर भयंकर दंगों का कारण बना। लेकिन इन घटनाओं को तथाकथित सेकूलर मीडिया द्वारा कभी सम्प्रदाय के उल्लेख के साथ प्रचारित या प्रसारित नहीं किया गया। हमेशा ‘एक समुदाय’, ‘समुदाय विशेष’ और ‘अन्य समुदाय’ जैसे भ्रामक उल्लेखों से काम चलाया गया।

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परन्तु इस घटना के बाद यह पहली बार हुआ कि मीडिया ने इस बात को खुलकर रेखांकित किया कि मरने वाला युवक ‘मुसलमान’ था और उसको मौत के घाट उतारने वाले लोग ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ के सदस्य थे। क्या इस प्रकार की रिपोर्टिंग को जिम्मेदारीपूर्ण कहा जा सकता है? अभी दो महीने पूर्व ही भटिंडा के एक इंजीनियर की हत्या इसी पुणे में कर दी गयी थी, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबार ने उस घटना का समाचार ‘इन्फोसिस के इंजीनियर की हत्या की गयी’ जैसे शब्दों के साथ दिया था, जबकि इसी अखबार ने पुणे की ताजा घटना का समाचार ‘मुस्लिम तकनीकविद की पीट-पीट कर हत्या, हिन्दू संगठन के लोग गिरफ्तार’ जैसे शीर्षक से दिया। क्या इस रवैये को किसी भी दृष्टि से उचित ठहराया जा सकता है?

वह तो प्रभु की कृपा है कि इस तथाकथित ‘हिन्दू राष्ट्र सेना’ का कोई सम्बंध संघ परिवार के किसी संगठन से नहीं है, वरना हमारे देश का बेशर्म सेकूलर मीडिया इस घटना के बहाने समस्त संघ परिवार को पानी पी-पीकर कोसता रहता। इससे यह बात तो सिद्ध हो गयी है कि संघ परिवार का कोई संगठन न तो उग्रवादी है और न उग्रवाद को पसन्द करता है। वैचारिक मतभेदों को सुलझाने और घृणित प्रचार करने वालों को रोकने तथा दंड दिलवाने के और भी संवैधानिक तरीके हैं, जिनका पालन करने में संघ परिवार विश्वास रखता है। अगर अब भी कोई संघ परिवार पर उग्रवादी होने का आरोप लगाता है, तो वह बौद्धिक बेईमानी ही करेगा। वास्तव में संघ परिवार में हिन्दू उदारवाद अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में जैसा दिखायी देता है, वैसा अन्य संगठनों में दुर्लभ है।

इस घटना से यह बात भी रेखांकित हुई है कि नई पीढ़ी के हिन्दू युवकों में पहले की तुलना में बहुत जागरूकता और एक प्रकार की आक्रामकता आयी है, जो अपने मानबिन्दुओं और महापुरुषों के अपमान के मामले में उतना सहिष्णु नहीं है, जितना पहले की पीढ़ी के युवक हुआ करते थे। इसलिए हिन्दू विरोधियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि अब हिन्दू महापुरुषों और मानबिन्दुओं के अपमान की घटनाओं को आसानी से उपेक्षित नहीं किया जा सकेगा और उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया होने की सम्भावना पहले से बहुत अधिक है।

उग्र हिन्दू युवकों की इस पीढ़ी की बड़ा भाग संघ परिवार के संगठनों के नियंत्रण से बाहर है, क्योंकि वे संघ के उदार हिन्दुत्व की अवधारणा को स्वीकार नहीं करते। इसीलिए हिन्दू राष्ट्र सेना, अभिनव भारत, श्रीराम सेना, बजरंग सेना जैसे संगठन अस्तित्व में आ गये हैं। इस प्रवृत्ति के लिए केवल उन युवकों को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि स्वतंत्रता के बाद हिन्दू समाज को इतना अधिक दबाया और अपमानित किया गया है कि इसकी प्रतिक्रिया न होती, तो ही आश्चर्य होता।

फिर भी हिन्दू उग्रवाद को उचित नहीं ठहराया जा सकता। उग्रवाद का हिन्दुत्व से कोई मेल नहीं है। इसलिए उग्र हिन्दू युवकों को समझना चाहिए कि हिंसात्मक प्रतिक्रिया करना किसी भी दृष्टि से सही नहीं है। इसके लिए उन्हें संवैधानिक मार्ग ही अपनाने चाहिए। नई केन्द्रीय सरकार ने इस घटना पर तत्काल कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और इसकी त्वरित जांच के लिए कदम उठाये हैं, यह एक सही कदम है।

 

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]