कवि की पीडा
कवि आज क्या सुनाए,
गीत किन पर अब लुटाए।
सपनोँ की रचना व्यर्थ है,
मन कहने मेँ असमर्थ है।
दुख है शब्दजाल सारे टूट गये,
घट कल्पनाओँ के अब फूट गये।
कोरे कागजोँ को कोरा रहने दो,
शब्द नहीँ अब आँसू बहने दो।
कविता क्या है केवल भावना है,
छंदोँ मेँ प्रेषित मन की कामना है,
इन शब्दोँ के तंतुजाल के आगे,
रिश्तोँ के भी थे कुछ कच्चे धागे,
जो क्षणभर मे ही टूट गये,
घट कल्पनाओँ के अब फूट गये।
कवि आज क्या सुनाए,
गीत किन पर अब लुटाए।
___सौरभ कुमार दुबे
कवि की पीड़ा का अच्छा चित्रण किया है !