मन तुम उन्मुक्त उड़ो
मन तुम उन्मुक्त उड़ो
पथ पर आते आवर्त अनेक,
तुम ध्येय बनाओ केवल एक,
नवयुग धरती पर लाने,
नवज्योति क्राँति की जगाने,
मनबाधा से मुक्त उड़ो,
मन तुम उन्मुक्त उड़ो।
पथ पर चलना तुम्हे अकेले,
मिल जाएँगे ढेरोँ मेले,
किँतु तुम एक प्रण ले चलना,
उसके अनुकरण मेँ ढलना,
चेतनता ले प्रयुक्त उड़ो,
मन तुम उन्मुक्त उड़ो।
___सौरभ कुमार दुबे
बढ़िया कविता.