संध्या
सूरज पश्चिम के तट खडा है,
आज बादलोँ का जमघट बडा है,
संध्या की बेला लेती अंगडाई है,
भगवा चदरिया अंबर पर छाई है।
पवन मद्धम बहती है पंछी चहकते हैँ,
बाग बाग सुरभित कर गुलाब महकते हैँ।
दूर कहीँ चंदन के वन माधुरी फैलाते,
तिमिर उठता देख झीँगुर गुनगुनाते।
कलरव करती चिडियोँ का झुंड उमडा है
आज बादलोँ का जमघट बडा है।
______सौरभ कुमार दुबे