कविता

नव उद्भव

तंगदिलोँ मेँ फिर मैँ कोई आग लगाने आया हूँ,
वो जो हारा बैठा राही है उसे जगाने आया हूँ।

जिसके पथ पर विपदा है,
जिसकी राह पर शूल अनेक,
उसकी मंजिल पर बिखरे है,
नवोत्सव के फूल अनेक।
उन फूलोँ के गुलदस्तोँ को आज सजाने आया हूँ।
तंगदिलोँ मेँ फिर मैँ कोई आग लगाने आया हूँ।।

बैठे जीवन से जो हैँ हारे,
पग पग पर खोज रहे सहारे,
उनके कंधोँ मेँ बोझ बडा जिनको नहीँ मिले किनारे,
मैँ नौका बनकर उनकी नईया पार लगाने आया हूँ।
तंगदिलोँ मेँ फिर मैँ कोई आग लगाने आया हूँ।।

जीवन जिनको झूठा लगता,
हर सपना हो रुठा लगता,
एक अधूरी आस बची हो उसका घट भी फूटा लगता,
उसी घडे को प्यार से भरकर प्यास बुझाने आया हूँ।
तंगदिलोँ मेँ फिर मैँ कोई आग लगाने आया हूँ।।

_____सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “नव उद्भव

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा जागरण गीत !

  • सौरव जी कविता बहुत अछि लगी .मज़ा आ गिया .

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