ब्लॉग/परिचर्चाराजनीतिसामाजिक

महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध : दोषी कौन ?

उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के अधिकांश प्रांतों में महिलाओं के प्रति बर्बर अपराधों की संख्या मेें चुनावों के बाद अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। यह बेहद चिंता व शर्म का विषय है। विशेषकर उत्तर प्रदेश में आधी आबादी के लिए जीना मुहाल हो गया है। उप्र में महिलायें व युवतियां कहीं पर भी सुरक्षित नहीं रह गयी हैं। पुलिस व कानून व्यवस्था पूरी तरह से पंगु हो गयी है। लेकिन इस भयानक दौर में भी अपराध की रोकथाम व पीडि़ताओं को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक सुरक्षा देने की बजाय समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग उन्हीं को कहीं न कहीं दोषी भी ठहरा देता है। साथ ही समाज के सभ्य कहे जाने वाले व राजनीति व प्रशासन में उच्च पदों पर बैठे लोग उन्हें यह शिक्षा देने लगते हैं कि महिलाओं को काफी सलीके से रहना चाहिये। यह उनकी मानसिक विकृति का परिचायक है।
उत्तर प्रदेश की घटनाएं दिल दहला देने वाली हैं। ऐसी घटनाओं से पता चलता है कि समाज में एक बहुत बड़ा वर्ग तालिबान आतंकियों की खतरनाक प्रवृत्ति को अपना रहा है। यह वर्ग महिलाओं के सामाजिक, आर्थिक विकास को झेल नहीं पा रहा है। बलात्कार एक पैशाचिक मानसिक मनोविकृति है। उत्तर प्रदेश की घटनाओं का सबसे दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि यहां पर अपराधों को करने का ढंग बहुत ही अधिक राक्षसी प्रवृत्ति का होता जा रहा है। पहले बलात्कार फिर हत्या करके पेड़ पर लटका देना, या फिर तेजाब पिलाकर मार डालना आदि वीभत्स से वीभत्सम अपराध की श्रेणी में ही आता है। लेकिन हमारी राजनैतिक व्यवस्था व प्रशासनिक अधिकारी इस प्रकार की घटनाओं को सुन सुनकर इतने तंग आ गये हैं कि उन्हें लगने लगा है कि अब बलात्कार और हत्यायें रूटीन अपराध बन गये है। पहले इस तरह की घटनाएं यदाकदा ही सामने आती थीं। लेकिन अब तो समाचार पत्र इस प्रकार के समाचारों से भरे रहते है।
आज कारण साफ है कि अपराधियों में कानून का भय पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। न्यायिक प्रक्रिया काफी सुस्त हो चुकी है। फिर अपराधी अपने आपको कानून के फंदे से बचाने के लिए हर संभव प्रयास करता है। अपराधियों को फिर अपने यहां कुड सीमा तक राजनैतिक व समाज के संभ्रंात कहे जाने वाले लोगों का परोक्ष अपरोक्ष समर्थन भी मिलने लग जाता है। जिसमें यह लोग यह साबित करने मंे कोई कसर नहीं छोड़ते कि पीडि़ता व उसका परिवार ही अपराधी है। विगत दिनों उप्र की घटनाओं से प्रदेश में पर्यटन व निवेश को गहरा आघात लगा है। यहां तक कि उप्र में घट रही घटनाओं के प्रति संयुक्त राष्ट्र संघ को भी गहरी संवेदना तो व्यक्त करनी ही पड़ी साथ ही उसने कहा कि यदि महिला उत्पीड़न की घटनायें नहीं रूकी तो हमें कुछ कदम उठाने पड़ सकते हैं। भारत की छवि को गहरा आघात लगा है।
संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी देश के सभी राजनैतिक दलों से भावुक अपील की कि अब समय आ गया है कि बलात्कार जैसी वारदातों पर राजनीति न की जाये। उन्होंने अपने सम्बोधन में इन घटनाओं से होने वाले नुकसान का भी जिक्र किया। एक ओर जहां इस प्रकार की घटनाएं घट रहीं हैं वहीं आज के आधुनिक युग में महिलाओं को ही यह बताया जा रहा है कि वे क्या पहनें क्या न पहनें। कैसे रहेें कैंसे न रह आदि। महाराष्ट्र के गृहमंत्री कहते हैं कि यदि हर घर में पुलिस रख दी जाये तब भी ऐसी वारदातें होंगी ही। इन सभी घटनाओं का एक सबसे बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि आज भी समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग अशिक्षित है। वह महिलाओं को आज भी पुरूष प्रधान मानसिकता के चलते उनको अपने मन का गुलाम रखना चाहता है। इसमें पुरानी विचारधारा की अशिक्षित महिलाएं भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। जो कि आधुनिक परिवेश को पूरी तरह से समावेशित नहीं कर पा रही है।
दूसरी ओर आधुनिक मीडिया व विज्ञापनों की दुनिया में महिलाओं को जिस अति ग्लैमराइस तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है उससे भी महिलाओं की छवि को आघात ही पहुंच रहा है। आज हर उत्पाद के विज्ञापन में महिलाओं के निर्वस्त्र शरीर का ही प्रदर्शन किया जा रहा है। टी वी पर आने वाले अधिकांश धारावाहिकों की कहानियों में अभिनेत्रियों को एक नहीं अनेक पुरूषों से संबंध बनाने वाली बेसिर-पैर की कहानियों का अभद्र तरीके से प्रदर्शन किया जा रहा है। यह समाज व मानवीय प्रवृत्ति की कड़वी सच्चाई है कि लोग परदे पर दिखायी जाने वाली बुरी चीजों के प्रति तेजी से आकर्षित होते हैं उन्हें सीखते हैं तथा जीवन में अपनाने की सोचते हैं। फिर उसका संदेश चाहे कितना ही अच्छा क्यों न हो।
कुछ सोशल साइट्स व इंटरनेट की दुनिया मेें सेक्स खुलेआम परोसा जा रहा है। आज बहुत से मोबाइल एप में सब कुछ भरा पड़ा है, जिसे किशोरवय के बच्चे बच्चियां खुलेआम देख रहे हैं। अभी तक कुछ शब्दों का प्रयोग घरों में नहीं होता था। लेकिन अब सभी समझ गये हैं उन तथाकथित शब्दांें व इशारों व भरपूर इस्तेमाल हो रहा है।
दूसरी सबसे बड़ी बात यह है कि भारत के अधिकांश गांवों में आज भी शौचालय नहीं है। महिलाओं व लड़कियों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। फिर गांवों में बिजली का अभाव है शिक्षा व मनोरंजन के पर्याप्त संसाधन हीं है। लड़कियों को पढ़ाई के लिए गांवों से दूर जाना पड़ रहा है। जिसका लाभ गांवों के दबंग व रसूखदार लोग इस प्रकार से उठा रहे हैं। एक बात और है कि जब दिल्लीमें चलती बस में एक निर्भया से सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम दिया गया था तब जबर्दस्त आंदोलन हुआ था। लोगों ने राष्ट्रपति भवन को घेर लिया था। लेकिन उप्र की जनता ने ऐसी कोई गर्मजोशी अभी तक तो नहीं दिखाई है। लेकिन इसके विपरीत देश व प्रदेश के राजनीतिज्ञों व मीडियाकर्मियों के लिए  बदायूं व अन्य जिले रेप पर्यटन सेंटर के रूप में अवश्य परिवर्तित हो गये हैं। उप्र में तो पुलिसकर्मी ही रक्षक से भक्षक बन बैठे हैं । थानों तक में महिलायें सुरक्षित नहीं हैं। अब जब तक दुराचारियों को सरेआम फांसी पर नहीं लटकाया जायेगा व सऊदी अरब जैसा कानून नहीं लागू किया जायेगा तब तक अपराधियों में भय नहीे व्याप्त होगा। साथ ही ऐसे लोगों पर भी शिकंजा कसना होगा जो किसी न किसी रूप में इन अपराधियों के हौसले बुलंद करते हैं।