राजनीति

चुनाव के पहले जनहित ! चुनाव के बाद देशहित !!

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तस्वीर साभार http://www.desipainters.com/tag/aejaz-saiyed/page/31/ से

कल ही हमारे देश के नव निर्वाचित माननीय पी एम् श्री नरेन्द्र मोदीजी ने कहा की देश की इकॉनमी सुधारने के लिए कड़े निर्णय लेने होंगे जिससे कुछ लोग नाराज हो सकते हैं लेकिन यह फैसले शुद्ध रूप से देश के हित में लिए जाएंगे !

अब इन कड़े निर्णयों का क्या मतलब होता है और इससे कौन नाराज हो सकता है इसका मतलब रोज पेट को हाथ में लेकर कमाने खाने वाला शायद समझ न पाए लेकिन यह लेख नेट पर पढ़ने वाले जरुर समझ रहे होंगे !
वैसे तो पेट हो या गुब्बारा दोनों भी पिचके हुवे अच्छे नहीं लगते ! लेकिन हर चुनाव में चुनाव से पहले गुब्बारों का फुलना और बाद में पिचकना हर पिचके हुवे पेट को लेकर जीने वालों के लिए अब नया नहीं है !  और हम सब के लिए अब यह भी नया नहीं है की चुनाव से पहले जनता की जिस नाराजगी को कॅश करा कर सत्ता पाने वाले बाद में उसी नाराजगी को देशहित की दुहाई देकर न मिटा पाने की मजबूरी जाहिर करते हैं ! और अच्छे दिन आ गए का व्याकरण ही तो बदला है !  कह कर अच्छे दिन ला रहे हैं इस इरादे पर तो हम टिके हुवे हैं ! ऐसी भी सफाई देते हैं ! हालांकि ऐसी बातों की आदत लग चुकी जनता को ऐसे किसी सफाई की जरुरत भी नहीं होती लेकिन नेता स्वयं एक राजा की तरह सबकुछ कर डालने का वादा कर के खुद अपने लिए ही मुश्किल खड़ी कर ले तो क्या किया जा सकता है  ! लोग असाधारण उम्मीद अधीरता से कर रहे हैं क्यूँ की यह उम्मीद आपने ही जगाई है !
अब  सीधा सा सवाल यह पैदा होता है की केन्द्रीय राजनीति में इन नेताओं की हर चुनाव में यही परिपाठी क्यूँ चलती है और जनता भी क्यूँ चला लेती है ? हर चुनाव के नजदीक आते ही नेताओं को फिर वे चाहें सत्तापक्ष के हो या फिर विपक्ष के अचानक  जनहित देशहित से बड़ा क्यूँ लगने लगता है ? और चुनाव के बाद फिर से अगला चुनाव आने तक देशहित जनहित से बड़ा हो जाता है ! क्यूँ  ?
 वैसे तो दोनों हितों को एकदूसरे से कम नहीं आँका जा सकता ! और यह धर्म संकट ठीक वैसा ही होता है जैसे किसी गरीब घर के मुखिया  के सामने यह सवाल हो की घर में बीमार पड़े सदस्य और घर की पानी टपकाती जर्जर हो रही छत में से पहले किस पर खर्च करे ? क्यूँ की वह भी अब की बार सिर्फ एक का ही बेडापार करने की हालत में होता है ! लेकिन समस्या यह होती है की अगर छत पर खर्च करने की जगह बीमार सदस्य के इलाज में खर्च करता है तो छत से टपकते पानी से फिर कोई दूसरा सदस्य या फिर वही पहलेवाला दुबारा गंभीर रूप से बीमार हो सकता है या फिर छत ही गिर सकता है और अभी जो बीमार है उसका इलाज न कर भविष्य की सोचते हुवे पहले छत ठीक कराएगा तो बीमार सदस्य तो शायद बिना इलाज के और सीरियस हालत में चला जाए या फिर मर भी जाए ! अब ऐसे में कोई करे तो क्या करे ? कोई सलाह दे भी तो क्या सलाह दे !
 और जब एक घर की समस्या ही इतनी बड़ी लगने लगती है तो देश में तो कई घर है ! अनगिनत समस्याएं हैं अब इन समस्याओं के लिए आप पिछली सरकार पर दोष लगा भी दो तो इसमे नयी बात आप क्या कह रहे हो ! यह तो चुनाव से पहले आप ही तो पूरी डिटेल में कहते थे ! और सुनने वाले भी सब जानते थे ! और इसी हालत से उबारने के दावे के बलबूते ही तो आप जीते हो ! और इसी हालत से उबारने का विश्वास लिए ही तो जनता ने आपको सत्ता सौपी है ! फिर ये कड़ी चुनौती है यह सब कहने का क्या मतलब ? चुनौती आपने ही मांग कर स्वीकार की है किसीने थोपी तो नहीं !
मित्रों ! और मेरे देशवासियों !! यह मेरी मोदी सरकार की कोई विपक्षी होने के नाते की गई कोरी आलोचना नहीं है ! बल्कि पूरी सहानुभूति और शुभकामनाओं के साथ उनके चुनाव के बाद के ऐसे वक्तव्यों का निष्पक्ष विश्लेषण है जो भारत के नेता और जनता का दुनिया के सामने बनते उस चित्र को सामने लाने की कोशिश है जो दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद निश्चित ही हमारे लिए भूषनावह नहीं है !
आपको याद होगा मोदी जी ने सदन के अपने पहले भाषण में कहा था की हमारे देश की पहचान scam India है जो की  skill India होनी चाहिए ! अब जाहिर सी बात है इसमे जनता तो  scam करने से रही ! इसीलिए  scam  शब्द नेताओं की और इशारा करता है और  skill नेताओं में हो न हो जनता में जरुर होता है ! यही बात तो मोदीजी याद दिला रहे थे ! की दुर्भाग्य से जिनके पास स्किल है उनका भाग्य उन नेताओं के हाथ में होता है जो  scam करने में व्यस्त रहते हैं ! और दुर्भाग्य यह भी है की दुनिया में हमारे देश की पहचान नेताओं से बनती है जनता से नहीं ! लेकिन बावजूद इसके हमारे देश की जनता ने आय टी जैसे क्षेत्र में दुनिया में स्किल इण्डिया का भी लोहा मनवाया था ! इसीलिए मोदीजी का जनता के इस स्किल को सदन में सन्मान देना निश्चित ही सराहनीय है ! लेकिन इस बात को उठाने के पीछे उनका  उद्देश्य क्या रहा होगा क्या केवल पूर्व में सत्ता में रहे नेताओं को नीचा दिखाना ? लेकिन दुनिया में भारत की बनी  scam India की पहचान का सत्य इतना वास्तविक है की ऐसा इल्जाम पूर्व में सत्ता में रहने वाली खुद उनकी पार्टी के नेता भी मोदी पर नहीं लगा सकते ! क्यूँ की देश की दुनिया में ऐसी पहचान को लेकर चिंता अब चौपालों चौराहों पर भी सुनने को मिल जाती है !
अब हम आते हैं अपने इस लेख के उद्देश्य पर जो की जनहित और देशहित पर केन्द्रित है ! तो क्या लगता है आपको देश की दुनिया में पहचान को बदलना किस हित से जुड़ा है ? देशहित  या जनहित ?? चलिए सीधा जवाब देना मुश्किल हो रहा हो तो बताइये क्या केवल देश की दुनिया में पहचान बदलने के दावे के बलबूते ही मोदीजी चुनाव जीते हैं ? क्या आपने केवल इसी वादे की पूर्ति के लिए उन्हें वोट दिया है ? नहीं न ? लेकिन आपने इसके अलावा और किस वादे के लिए वोट दिया यह मैं नहीं पूछूँगा लेकिन बताइये अगर देश की पहचान बदलने के एवज में  आपके हित के लिए किये गए किसी वादे की अनदेखी होती है तो क्या आप स्वीकारने को तैयार हैं ? नहीं, हम भी उस गरीब कुटुंब प्रमुख के सदस्यों की तरह बिमारी का इलाज और घर की छत दोनों चाहते हैं और ज्यादा संभव है की हम बिमारी के इलाज की पहले मांग करें !
हमारी इसी मानसिकता की वजह से नेता डरते हैं ! और इसीलिए चुनाव से पहले वे जनहित की बाते करते हैं और चुनाव के बाद धीरे से डर डर कर देशहित की बात ! लेकिन इससे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चलाने वाली भारत की जनता के प्रति दुनिया में जो सन्देश जा रहा है वह लोकतंत्र के लिए एक नकारात्मक आदर्श प्रस्थापित कर रहा है ! वह पहचान बना रहा है जो की नेताओं की वजह से बनी  scam India की पहचान से भी ज्यादा नकारात्मक और असन्माननीय है ! वह है selfish India !  जो की आजादी की लड़ाई और उसके कुछ दशको तक जो पहचान थी उसके बिलकुल विपरीत है ! उस वक्त जनहित और देशहित एक ही थे लेकिन अब ? अब हमारे जनहित भी एक नहीं रहे और वे जन ,जाती,धर्म,भाषा,प्रांत जैसी संकीर्ण और स्वार्थी पहचानो में विभाजित    हो गए है ! और जो इनसे बच भी गए या फिर जिनके लिए दो वक्त की रोटी के आगे इनका कोई मूल्य नहीं है ऐसे लोगों के जनहित रोटी कपड़ा मकान तक सिमित हो गए ! और इसीलिए भारत में देशहित ऐसे जनहितों के आगे बौना होने का प्रमाण हम दुनिया को दे रहे हैं क्यूँ की अगर चुनाव में जीतना है तो इसी परिपाठी को फॉलो करने के लिए हमारे नेता भी मजबूर हैं ! या यूँ कहे की सेल्फिश होने पर मजबूर हैं !
इसीलिए मेरा निवेदन है की इस सेल्फिश इण्डिया की पहचान को बदलने के लिए देशहित को जनहित से ऊपर रखना सीखो वरना मोदी आये या कोई और पाकिस्तान और चीन घुसपैठ, सीज फायर  करता रहेगा क्यूँ की उसे पता है युद्ध कभी भी जनहित में नहीं होता इसीलिए भारत की सत्ता में आनेवाला कोई भी नेता ऐसा कुछ करने की तो छोडिये बोलने की भी हिम्मत नहीं करेगा ! जो की हम नयी सरकार में भी देख चुके हैं ! और जब मोदी जैसा नेता यह नहीं कर सकता तो और कोई भी तब तक नहीं कर सकता जब तक हम देशहित को जनहित से ऊपर नही रखेंगे !

सचिन परदेशी

संगीत शिक्षक के रूप में कार्यरत. संगीत रचनाओं के साथ में कविताएं एवं गीत लिखता हूं. बच्चों की छुपी प्रतिभा को पहचान कर उसे बाहर लाने में माहिर हूं.बच्चों की मासूमियत से जुड़ा हूं इसीलिए ... समाज के लोगों की विचारधारा की पार्श्वभूमि को जानकार उससे हमारे आनेवाली पीढ़ी के लिए वे क्या परोसने जा रहे हैं यही जानने की कोशिश में हूं.

One thought on “चुनाव के पहले जनहित ! चुनाव के बाद देशहित !!

  • विजय कुमार सिंघल

    आचार्य जी, आपकी आशंकाएं काल्पनिक हैं. जन हित और देश हित में कोई अंतर नहीं है. जो जन हित में नहीं है वह देश हित में कैसे हो सकता है और जो देश हित में नहीं है वह जन हित में कैसे हो सकता है? वास्तव में देश हित और जन हित एक दूसरे के पर्यायवाची हैं. मोदी जी के यह कहने कि “कुछ लोग नाराज हो सकते हैं” कि इन फैसलों से एक वर्ग विशेष जैसे व्यापारी या सरकारी कर्मचारी या अधिकारी नाराज हो सकते हैं, लेकिन कुल मिलाकर उसका लाभ देश और सारे समाज को मेलेगा. इसलिए आपकी सभी आशंकाएं निराधार हैं, जब तक आपके पास कोई ऐसा उदाहरण न हो जिसमें मोदी जी ने देश हित के नाम पर समाज का अहित किया हो, तब तक आपको आशंकाएं और आलोचना करना उचित नहीं है. इसलिए अचरी जी, कुछ समय प्रतीक्षा करें, और देखें कि मोदी जी वास्तव में क्या कर रहे हैं और व किसके हित या अहित में है. आपको आलोचनाएँ करने के बहुत अवसर मिलेंगे, लेकिन समय पूर्व ही आशंकाएं करना गलत है. धन्यवाद.

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